बुधवार, 17 जून 2009

अध्याये दो

७२ श्लोकों का एक आध्याये संजय कहते हें की अर्जुन के प्रति मधु सुदन यह वचन कहते हें |अर्जुन तझे समय -असमय का कोई ज्ञान ही नही यूँ ही मोह रूपी प्रकृति में फंस रहा हे | तो ऐसा श्रेष्ठ पुरूष करते हे उन्हें ऐसा करनाही चाहिए ,ऐसा करने से तो कोई लाभ ही होना हे कोई यश ही प्राप्त होना हे -------इसी श्लोक ने सारा महाभारत खड़ा करदिया अगर विचार किया जाए तो भगवान की चतुराई का ज्ञान हो जाता हे |अगर समये -असमय के शब्दों को भगवान कहते तो मोक्ष का मार्ग आसन हो जाता ,मनुष्य कर्म बंधन से मुक्त होचुका होता | कीर्ति की जरूरत हो ती स्वर्गकी अपने आप निश काम कर्म हो जाते समय-कालचक्र ने सब कुछ मनुष्य से ले लिया बे कार बना दिया (समये की जान कारी हेतु ज्योतिष -वदिया को प्रगट करदिया )

मंगलवार, 9 जून 2009

गुरुवार, 4 जून 2009

गीता के सभी पात्रों के अलगअलग स्वरूपों में दानियों का एक स्वरूप कर्ण का हे कर्ण के बारे में खा जाता हे की उसे जन्मते ही उस की माँ ने लोक लजा के कारण त्याग दिया था |कहानी को शायद सभी जानते हे आज के ऋषि -मुनि ,गुरु -घंटाल महाभारत के काल जेसे सामर्थ वान नही रहे |मानलो किसी की आस्था का ही अगर सवाल हो -तो भी इस सचाई को नकारा तो नही जा सकता की तब के महापुरुष आजके महा पुरुषों की अपेक्षा अधिक विद्वान-सामर्थ वान रहे थे आज के महा पुरुषों की तरह उस युग के एक महा -पुरूष कर्ण की माता कुंती के पिता के महल में पधारे कुंती ने उन की खूब सेवा की |कुंती की सेवा से परसन हो उन्हों ने कुंती को एक मन्त्र थमा दिया और कहा इस मन्त्र को पड़ जिस देवता को पुकारो गी वो उपस्थित हो तुम्हारी मनो कामना पुरी करे गा |(आज भी ऐसे लोग समाज में मिल जाते हे )एक दिन कुंती ने सूर्य को देख मन्त्र पड़ ही डाला |सूर्य देव उसी समय उपस्थत हो गये |सूर्य देव ने आते ही कुंती को कहा ,मुझे बुलाया हे तो मेरा भोग मुझे दो नही तो में तमको श्राफ दे दुगा (आज के महा -पुरूष भी मन्त्र पकडा देते हे परन्तु यह नही बताते कि मन्त्र के देवता का भोग क्या हे -इनके शिष्य भी कुंती कि भांति फंस कर अपना और अपने बाल-बचों को मुसीबत में धकेल रहे हे ).ऐसे कर्ण का साथ कृष्ण ने तब नही दिया था अब तो बात ही और हे में यह नही कहता हमारे शास्त्र कहते हें दानी कर्ण जेसा दानवीर भी कोई आज नही हे परन्तु कर्ण के दान द्वारा प्राप्त पुन का फल भी कर्ण को नही बचा सका | बार तो उसे मरने को अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ यह भी बताने का प्रयास किया कि प्रतिज्ञा भी नही करनी चाहिए |शास्त्रों में करोडों का दान तभी सफल होता बताया गया हे जब साथ में दक्षिण लगी हो इस का परमं पवित्र प्रमाण महा राजा हरीश चन्द्र के अतिरिक्त और कोंन हो सकता हे |गीता में आगे चल कर भगवान दान के बारे में भी बात करें गे

मंगलवार, 2 जून 2009

स्वरूप

गीता में दोनों पक्षों की सेना में सम्लित योद्धाओं के स्वरूपों कर्मों को भी विचारा जाए तो अलग किस्म का अनुभव प्राप्त होता हे ,जेसे युद्घ भूमि में निर्बलों का कोई काम ही नही नही चारों और ध्नुधार्री बलशाली भीम अर्जुन जेसे शूरवीर सत्यकी -विराट जेसे महारथी काशीराज जेसे राजा महाराजा मनुष्यों में श्रेष्ट पराक्रमी बालक अभिमन्यु सभी के स्वरूपों को देखें तो यही पता चलता हे की यह सभी पांडवों सहित देवताओं के ही अंश थे कर्ण दानवीर और युध्क्ला के विद्वान गुरु -----------द्रोणाचार्य संग्राम विजयी कृपा चारिय अश्व्त्धामा भूरिश्रवा युद्घ के माहिर लोग्हे परन्तु प्रतिज्ञा वान भीष्म पितामा यंत्र मन्त्र विशेशग्य द्रोणाचार्य तपस्वी अर्जुन सत्य वादी युधिष्टर अर्थात (दानी-ज्ञानी -तपी -बली-प्रतिज्ञा करने वाले देव -पुत्र प्रभु कृष्ण के द्वेषी चाहने वाले सगे सम्बन्धी छोटे बडे वे सभी )धर्मात्मा विद्वान समर्थवान इस यूह में क्यों मरे गये क्या भगवान को दानी कर्ण पसंद नही थे ?एक और घटना सत्यवादी हरीश चन्द्र की हे जो साबित करती हे की बिना dkshina के -राज पाठका दान भी व्यर्थ होजाता हे Iwh बलशाली bl भी bekar साबित हुआ जो nihton और mjlumon pr julm krta rh a prtiya or snklp wiklpon