सोमवार, 17 अगस्त 2009

काला धन

काला धन जिस घर के अंदर अपने पैर परोसेगा
खून में शुगर बड़ जायेगी , दिल का दोरा मारेगा
डॉक्टरों के चकर अपनी फीसें बडाते जाएँ गे
पहले दोर में ,अफसर अपने दफ्तर में कम आएं गे
काला धन चमगादड़ बन रात में उड़ने लगता हे
बदतह्जीबी की हर आदत से वो जुड़ने लगता हे
बेजा -खर्चा ,नई जवानी बाप से जिस दिन मांगे गी
रब जाने ,तहजीब के रास्ते ,कहाँ तलक को लांघेगी
बचे रात ढले डिस्को से वापस घर जब आयें गे
परेशान साहिब घर के बुढों पर चिलाएंगे
परेशानियाँ नई बिमारियों के दरवाजे खोलेगी
क्लब से lot के मेमसाहिबा -साहिब से कम बोलेंगी
लानत ऐसे काले धन पे जो बदनामी दे जाए
"अंजुम" बडा साहिब तब यह सोचे -अब रब दुनिया से मुझे लेजाए

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

आप से मिलने की युक्ति

क्या यह चिंता
आपही का एक विभाग नही?
रोज -रोज सताये जाती हे
प्रभु आपने ही हे कहा
यह जीव आप का ही अंश हे
आप बोस जगत के
बाकी कर्मचारी
में अंश आपका
यदि जगत का कहलवाऊ गा
तो कर्मचारियों के हथे
चड़ जाऊँ गा
झूठा जगत
इस का पुरा विभाग झूठा
सचा तो बोस हे
सचा अंश उस का
जिसे कर्मचारी रोक नही पाते
अंश आपका
जब चाहे
मिले आप को
यही तो सिधांत हे
विभाग सहित मिलना
नही आसन
विभाग रहित
डायरेक्ट जा मिलना
हे सची पहिचान
जो अंश सीधे
आप को पूजने आते हें
सभी विभाग आपके
उसे निहारते रह जाते हें
कोई देखता ताजुब से
कोई होता परेशान
हक केवल आपके अंश का
जब चाहे मिले आन
जो विभागों की अनुमती चाहते हें
वह विभागों के चक्र में पड़ जाते हें

कलयुग की गीता

कलयुग
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कलयुग में यदि कृष्ण होते
तो गीता गीता कुछ इस था लिखवाते
हे अर्जुन
यह जो रिश्तेदारियां हें
मान ले , यह बीमारियाँ हे
जिन को तू रिश्तेदारियां बताता हे
वही एक दूजे के न बने
पिता -पुत्र में बनती नही
बीबी घर में रहती नही
भाई-बहन का रिश्ता तार-तार हुआ
गुरभाई --गुर बहन का रिश्ता ही बता रहा हे
तू फ़िर भी ऐसों को अपना बता रहा हे
कोन पिता किस का , कोन किसका पुत्र
एक साथ बैठ जाम टकराते हें
खींच कश सिगरेट का धुँआ उड़ाते हें
घर वाली नही अब यहाँ घर में
न मिलतीं ही घर में उसे ह्क्दारियां
अब मिलती हें इन को
बाहर की जिमेवारियां
अब से पहले नही थीं भारत में ऐसीं दावेदारियां
लिख डालो कलयुग की इस गीता में
चोरों के लिए ,बेकार हो गईं पहरेदारियां
क्या लिख्वाऊ अर्जुन इस माहोल में
चोर भी लगे मांगने थानेदारियां
मत युद्घ करना अर्जुन तू इन से
इस धर्म -मये युद्घ में
तेरा ऍनकाउन्टर हो जाए गा
फ़िर इजत से नही
कुते की तरहा घसीट
तुझे जलाया जाए गा
देख अनदेखी कर दे
सुन कर करले कानो को बंद
जुबान से कुछ कहना नही
कलम की तलवार से लड़ना नही
वीडियो बनता जा
सब को दिखता जा
अगर तू इस युद्घ में मारा जाए गा
तो समझ ले
एकाध दिन के लिए ,टी.वी .पर छा जाए गा

गुरुवार, 13 अगस्त 2009

माया


त्रि गुणात्मक माया आप की
प्रभु जी अनेकों विभाग इसके
इन सब के बोस प्रभु आप
विकार रहित
विकार सहित
विभाग करते काम अपना-अपना
अंत में करवाते आप से मुलाकात
हर विभाग से
गुजर पाना
नही आसन काम
विभाग हें
यंत्र मन्त्र तन्त्र के
आसन -क्रिया ,कर्म -कांड के
ज्ञान यज्ञ पुन्य दान के
समाधि योग ध्यानादि के
सतो गुणी ,रजो गुणी और तमो गुणी
ग्रह--नक्षत्र इत्यादि
कोई पता नही
साधक कहाँ अटक जाए
कोई पता नही
सिद्ध होने में
कितने जन्म
व्यर्थ जावें
इतना ही नही
ऐसे कईयों विभागों से
क्लीयरेंस लेनी पड़ जावे
इन विभागों में
इनके स्वामी
कम कोई नही
सब एक से बड़ कर एक हें
बडे कठोर चित चोर
परिवर्तन शील और बडे ठग
जब तक इन की कसोटी पर
खरा न उतर पाऊं गा
तब तक
प्रभु
आप से मिल केसे पाऊँ गा ?
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प्राण पखेरू

उड़ते ही , प्राण पखेरू
उड़ते ही प्राण-पखेरू
देह से गिले शिकवे छोड़ गये
जो देह थी सजती हार -श्रृंगार से
आज उसी को ,एक मुठी रख बना छोड़ गये
रहते प्राणों के
इस देह से बहुत प्यार किया
बहुत कोशिशें कीं
की प्राण इस में बने रहें
होसले भी बहुत बुलंद किए
जो एक झटके में चूर हुए
नाज था जिन पर
उन दोस्तों को भी देखा
बिना इंतजार किए
इस देह को दफनाने चले
दफन होते ही
देह का वजूद घट गया
न वेसा रंक ही रहा,न कोई वेसा रजा रहा
वजूद तो उन का भी नही बचा
जिन की चिताओं पर लगे थे मेले
नाश-वां इस देह से प्यार कर
क्या कभी सुखी रहे?
प्राण छुटें तो ऐसे
कम से कम
दुनिया वाले याद तो करें
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अपना धर्म

--------------------------------------------------------------------------------------------------अपने धर्म में रहो
अपने धर्म के ही कर्म करो
दुसरे का चाहे लाख हो अछा धर्म
अपने में ही जियो -मरो
धर्म ब्रह्मिण का
पड़ना और पड़ना
क्षत्रिय का
सब की रक्षा और इजत बचाना
धर्म वेश्य का
सचा-सुचा व्योपार
शुद्र का धर्म
सेवा कर कमाना
सेवा कर वही कमाते हें
जो भांति -भांति की फेक्ट्रियां लगते हें
इन का बना मॉल बेच कर
वेश्य अपना घर चलते हें
ब्रह्मिण तो पड़ते और पड़ते हें
इस देह में ब्राह्मण मुख को कहा
हाथ को क्षत्रिय पेटू-पेट को वेश्य
शुद्र कहा टांगों को
एक को भी निकाल दो
या एक का भी कर्म बदल डालो
देह का कबाडा हो जाए गा
पेटू वेश्य कर ता व्योपार सचा इस देह में
जो जाता पेट में
उसे सभी अंगों को पहुंचता हे
चोट लगती शुद्र रूपी पांव को जब
रक्षा करने को
क्षत्रिय हाथ आगे आता हे
ब्राह्मण मुख हो दुखी
इसकी चोट से
क्या आंसू बहा कर नही दिखता हे
बदल डालो उस समाज को
जो इस देह जेसा ना हो

सोमवार, 10 अगस्त 2009

फतवा ,हुक्मनामा, या प्रभु की आज्ञा ?

फतवे ,हुक्म-नामे ,धर्मिक आदेशो को क्या हम लोगों को भगवान आँख बंद कर के मोनने को कहते हें?...... ॥ क्या हिंदू ,मुसल मान,सिख ,ईसाईयों ---------की पवित्र किताबों में कही लिखा गया हे की इन आदेशों को बिना विचारे धर्म की लाभ -हानि को सोचे भगवान के द्वारा कहे गये वचनों को ही बदल डाला जावे ?......यदि कहीं ऐसा कुछ भी लिखा गया हे तो मित्रो मुझे जरुर बताना (आप की कृपा होगी )................ ॥ यह केसा हे जेहाद ..............................कसाब की भूख हडताल से ...................समझ में आता हे ........... । झूठ -मकारी का पुलिंदा ..................................................................गिरगिट की तरहां रंग बदलना यह केसा जेहाद हे ......यह किस धर्म का बचाव हे ?॥किस धर्म में ऐसा कहा गया ?की झूठ बोलना पुण्य का काम हे ? जरा पूछो तो उनसे जिनको जेहादी कहा जाता...जेहाद के नाम पर गुमराह किया जाता अब जरा इधर भी देख लें ॥जो जेहाद के लिए मरने मरने को हे आमदा ............मुम्बई पर हुआ एक जेहादी हमला ,कसाब जिन्दा पकडा गया बाकियों को मर गिराया पूछो जरा उनसे जिनके बेचारे यह बचे मारे गये ...... ......... ........................ ................................... उन के परिवारों का चूल्हा केसे जलता हे ?कसाब ने दोस्त होकर उनका खूब दोस्ती को निभाया बेशर्मी की सभी हदें पर कर गया हे ख़ुद ही देख लो जो ख़ुद के खाने में मटन-बिरयानी मांगता हे क्या जेहाद यही कुछ सिखाता हे ?