शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

Shri Ram Katha | Ram Katha | Ram Kahani | Shri Ram Kahani | Balkand | बालकाण्ड | श्रीरामचरितमानस | राम कहानी
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बालकाण्ड
प्रथम सोपान-मंगलाचरण
श्लोक :
* वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥
भावार्थ:-अक्षरों, अर्थ समूहों, रसों, छन्दों और मंगलों को करने वाली सरस्वतीजी और गणेशजी की मैं वंदना करता हूँ॥1॥
* भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌॥2॥
भावार्थ:-श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की मैं वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते॥2॥
* वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम्‌।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥3॥
भावार्थ:-ज्ञानमय, नित्य, शंकर रूपी गुरु की मैं वन्दना करता हूँ, जिनके आश्रित होने से ही टेढ़ा चन्द्रमा भी सर्वत्र वन्दित होता है॥3॥
* सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ।
वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ॥4॥
भावार्थ:-श्री सीतारामजी के गुणसमूह रूपी पवित्र वन में विहार करने वाले, विशुद्ध विज्ञान सम्पन्न कवीश्वर श्री वाल्मीकिजी और कपीश्वर श्री हनुमानजी की मैं वन्दना करता हूँ॥4॥
* उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्‌।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्‌॥5॥
भावार्थ:-उत्पत्ति, स्थिति (पालन) और संहार करने वाली, क्लेशों को हरने वाली तथा सम्पूर्ण कल्याणों को करने वाली श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री सीताजी को मैं नमस्कार करता हूँ॥5॥
* यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा
यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्‌॥6॥
भावार्थ:-जिनकी माया के वशीभूत सम्पूर्ण विश्व, ब्रह्मादि देवता और असुर हैं, जिनकी सत्ता से रस्सी में सर्प के भ्रम की भाँति यह सारा दृश्य जगत्‌ सत्य ही प्रतीत होता है और जिनके केवल चरण ही भवसागर से तरने की इच्छा वालों के लिए एकमात्र नौका हैं, उन समस्त कारणों से पर (सब कारणों के कारण और सबसे श्रेष्ठ) राम कहलाने वाले भगवान हरि की मैं वंदना करता हूँ॥6॥
* नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति॥7॥
भावार्थ:-अनेक पुराण, वेद और (तंत्र) शास्त्र से सम्मत तथा जो रामायण में वर्णित है और कुछ अन्यत्र से भी उपलब्ध श्री रघुनाथजी की कथा को तुलसीदास अपने अन्तःकरण के सुख के लिए अत्यन्त मनोहर भाषा रचना में विस्तृत करता है॥7॥
सोरठा :
* जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥1॥
भावार्थ:-जिन्हें स्मरण करने से सब कार्य सिद्ध होते हैं, जो गणों के स्वामी और सुंदर हाथी के मुख वाले हैं, वे ही बुद्धि के राशि और शुभ गुणों के धाम (श्री गणेशजी) मुझ पर कृपा करें॥1॥
* मूक होइ बाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन।
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलिमल दहन॥2॥
भावार्थ:-जिनकी कृपा से गूँगा बहुत सुंदर बोलने वाला हो जाता है और लँगड़ा-लूला दुर्गम पहाड़ पर चढ़ जाता है, वे कलियुग के सब पापों को जला डालने वाले दयालु (भगवान) मुझ पर द्रवित हों (दया करें)॥2॥
* नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन।
करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन॥3॥
भावार्थ:-जो नीलकमल के समान श्यामवर्ण हैं, पूर्ण खिले हुए लाल कमल के समान जिनके नेत्र हैं और जो सदा क्षीरसागर पर शयन करते हैं, वे भगवान्‌ (नारायण) मेरे हृदय में निवास करें॥3॥
* कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन।
जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन॥4॥
भावार्थ:-जिनका कुंद के पुष्प और चन्द्रमा के समान (गौर) शरीर है, जो पार्वतीजी के प्रियतम और दया के धाम हैं और जिनका दीनों पर स्नेह है, वे कामदेव का मर्दन करने वाले (शंकरजी) मुझ पर कृपा करें॥4॥
आगे पढें...  
विभिन्न काण्ड
• बालकाण्ड
• अयोध्याकाण्ड
• अरण्यकाण्ड
• किष्किन्धाकाण्ड
• सुंदरकाण्ड
• लंकाकाण्ड
• उत्तरकाण्ड

श्रीरामचरितमानस

बालकाण्ड
प्रथम सोपान-मंगलाचरण
श्लोक :
* वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥
भावार्थ:-अक्षरों, अर्थ समूहों, रसों, छन्दों और मंगलों को करने वाली सरस्वतीजी और गणेशजी की मैं वंदना करता हूँ॥1॥
* भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌॥2॥
भावार्थ:-श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की मैं वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते॥2॥
* वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम्‌।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥3॥
भावार्थ:-ज्ञानमय, नित्य, शंकर रूपी गुरु की मैं वन्दना करता हूँ, जिनके आश्रित होने से ही टेढ़ा चन्द्रमा भी सर्वत्र वन्दित होता है॥3॥
* सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ।
वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ॥4॥
भावार्थ:-श्री सीतारामजी के गुणसमूह रूपी पवित्र वन में विहार करने वाले, विशुद्ध विज्ञान सम्पन्न कवीश्वर श्री वाल्मीकिजी और कपीश्वर श्री हनुमानजी की मैं वन्दना करता हूँ॥4॥
* उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्‌।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्‌॥5॥
भावार्थ:-उत्पत्ति, स्थिति (पालन) और संहार करने वाली, क्लेशों को हरने वाली तथा सम्पूर्ण कल्याणों को करने वाली श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री सीताजी को मैं नमस्कार करता हूँ॥5॥
* यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा
यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्‌॥6॥
भावार्थ:-जिनकी माया के वशीभूत सम्पूर्ण विश्व, ब्रह्मादि देवता और असुर हैं, जिनकी सत्ता से रस्सी में सर्प के भ्रम की भाँति यह सारा दृश्य जगत्‌ सत्य ही प्रतीत होता है और जिनके केवल चरण ही भवसागर से तरने की इच्छा वालों के लिए एकमात्र नौका हैं, उन समस्त कारणों से पर (सब कारणों के कारण और सबसे श्रेष्ठ) राम कहलाने वाले भगवान हरि की मैं वंदना करता हूँ॥6॥
* नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति॥7॥
भावार्थ:-अनेक पुराण, वेद और (तंत्र) शास्त्र से सम्मत तथा जो रामायण में वर्णित है और कुछ अन्यत्र से भी उपलब्ध श्री रघुनाथजी की कथा को तुलसीदास अपने अन्तःकरण के सुख के लिए अत्यन्त मनोहर भाषा रचना में विस्तृत करता है॥7॥
सोरठा :
* जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥1॥
भावार्थ:-जिन्हें स्मरण करने से सब कार्य सिद्ध होते हैं, जो गणों के स्वामी और सुंदर हाथी के मुख वाले हैं, वे ही बुद्धि के राशि और शुभ गुणों के धाम (श्री गणेशजी) मुझ पर कृपा करें॥1॥
* मूक होइ बाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन।
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलिमल दहन॥2॥
भावार्थ:-जिनकी कृपा से गूँगा बहुत सुंदर बोलने वाला हो जाता है और लँगड़ा-लूला दुर्गम पहाड़ पर चढ़ जाता है, वे कलियुग के सब पापों को जला डालने वाले दयालु (भगवान) मुझ पर द्रवित हों (दया करें)॥2॥
* नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन।
करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन॥3॥
भावार्थ:-जो नीलकमल के समान श्यामवर्ण हैं, पूर्ण खिले हुए लाल कमल के समान जिनके नेत्र हैं और जो सदा क्षीरसागर पर शयन करते हैं, वे भगवान्‌ (नारायण) मेरे हृदय में निवास करें॥3॥
* कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन।
जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन॥4॥
भावार्थ:-जिनका कुंद के पुष्प और चन्द्रमा के समान (गौर) शरीर है, जो पार्वतीजी के प्रियतम और दया के धाम हैं और जिनका दीनों पर स्नेह है, वे कामदेव का मर्दन करने वाले (शंकरजी) मुझ पर कृपा करें॥4॥
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विभिन्न काण्ड
• बालकाण्ड
• अयोध्याकाण्ड
• अरण्यकाण्ड
• किष्किन्धाकाण्ड
• सुंदरकाण्ड
• लंकाकाण्ड
• उत्तरकाण्ड
 

गुरुवार, 21 जनवरी 2010

इंटरनेट पर परिक्रमा




मान्यता है कि रामकथा सुनने के लिए भगवान हनुमान को धरती पर बार-बार आना पडता है, लेकिन आधुनिक डिजिटल युग में यदि हम ईश्वर को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो यह कुछ क्षण में ही संभव है।






एक दशक पहले तक किसी टीवी चैनल पर संतों की वाणी सुनने के लिए सप्ताह भर इंतजार करना पडता था, लेकिन अब रियलटाइम केबल, इंटरनेट, आईपीटी.वी. और डायरेक्टटू होम सर्विस की सहायता से अध्यात्मिक वक्ताओं और श्रोताओं के बीच का अंतराल सिमट गया है। भक्त न केवल हजारों मील दूर बैठ कर प्रभु के चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित कर रहे हैं, बल्कि यदि उनका मन अशांत है, तो वे इलेक्ट्रॉनिकऔर ऑनलाइनमीडिया के माध्यम से अपने गुरु की वाणी भी सुन सकते हैं।


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प्रचलित हुई डिजिटल पूजा


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आपको यदि पूजा की विधि मालूम नहीं है और आप देश के जाने-माने तीर्थ स्थलों पर पूजा करना चाहते हैं, तो निराश न हों। अब आप यह सब ऑनलाइनकर सकते हैं। देश-विदेश के ज्यादातर मंदिरों की अपनी वेबसाइट्सऔर मेल एड्रेसेजहैं। उदाहरण के लिए यदि आप तिरुपतिबालाजीमें पूजा करना चाहते हैं, तो मंदिर की वेबसाइटपर पूजा की विधि, दान-दक्षिणा आदि के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। एक क्लिकपर आप देवता के दर्शन, मंदिर परिक्रमा आदि संपन्न कर सकते हैं। यहां का प्रसाद भी कुछ दिनों के बाद पार्सल के माध्यम से आपके पास पहुंच जाएगा।






अध्यात्म केंद्रित टीवी चैनल्स






एक दशक पहले तक भक्ति के कार्यक्रमों के लिए लंबा इंतजार करना पडता था। ये प्रोग्राम आधे घंटे के कीर्तन के हुआ करते थे। लेकिन आज आस्था, संस्कार, साधना, दिव्य आदि अनेक टीवी चैनल्सहैं, जिस पर चौबीसों घंटे अलग-अलग महाराज के प्रवचन, ध्यान-योग, पूजा स्थल पर आधारित कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। इन चैनल्सके दर्शक करोडों की संख्या में हैं। इससे व्यक्ति आसानी से अपने मनपसंद धार्मिक-अध्यात्मिक क्रिया-कलापों से जुड जाता है। कुल मिलाकर इसे हम धार्मिक जीवन में आई सैटेलाइट क्रांति कह सकते हैं।






सैटेलाइट के सुपर बाबा






सुबह 5.30बजे से आस्था, सहारा, इंडिया टीवी और स्टार न्यूज आदि टीवी चैनल्सपर बाबा रामदेव के योगासनों का प्रसारण किया जाता है। उनके योगासन इतने अधिक लोकप्रिय हो चुके हैं कि आज हर कोई हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा, स्पॉन्डिलाइटिस,आर्थराइटिस,पेट दर्द जैसी बीमारियों का मर्ज इन्हीं योगासनों में ढूंढता है।






इंटरनेट पर परिक्रमा






आप यदि उत्तर भारत में रहते हैं और दक्षिण भारत के किसी मंदिर की यात्रा करना चाहते हैं, तो इंटरनेट आपकी यात्रा आसान बनाकर मंगलमय बना देगा। आप जिस स्थान की यात्रा करना चाहते हैं, उसे गूगलसर्च इंजन पर जाकर सुनिश्चित जगह पर टाइप कर दें। कुछ सेकेंड्समें आपके सामने हवाई यात्रा और सडक यात्रा से संबंधित तमाम जानकारियां, जैसे- यात्री किराया, किस महीने में यात्रा करें, कौन-कौन सा सामान साथ लाएं, रहने-खाने का खर्च, कहां ठहरें आदि उपलब्ध हो जाएंगी। साथ ही कई ऐसी साइट्सहैं, जिस पर वेद, उपनिषद, गीता, धार्मिक गुरुओं के उपदेश आदि उपलब्ध हैं!

रविवार, 17 जनवरी 2010


 
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गुरुवार, 14 जनवरी 2010

कानून

सूचना प्रोद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम-2008 में हाल में हुए संशोधनों के बाद इंटरनेट के जरिए अश्लीलता एवं नग्नता परोसने तथा अन्य तरह के साइबर अपराधों पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।
सरकार ने इस कानून में संशोधनों के जरिए साइबर नग्नता को लेकर अधिनियम में सख्त कदम उठाए हैं। कानून की धारा 67-ए में इलेक्ट्रॉनिक रूप में नग्नता के लिए दंड का उल्लेख किया गया है।
पहली बार सरकार ने बाल नग्नता को लेकर एक नया सेक्शन 67-बी का उल्लेख कानून में किया है। इसका उद्देश्य इलेक्ट्रोनिक रूप में बच्चों के बीच नग्नता के प्रचार-प्रसार को रोकना तथा इलेक्ट्रॉनिक रूप में बच्चों के यौन शोषण में लगे लोगों को सजा दिलाना है। नग्नता को लेकर उल्लिखित दोनों ही धाराओं में पहली बार पकड़े गए व्यक्ति को पांच साल की सजा का प्रावधान है, जबकि दूसरी बार या अगली बार यह सजा सात साल तक की हो सकती है।
संशोधित कानून में प्रोटेक्टेड सिस्टम को लेकर भी व्याख्या की गई है। आईटी एक्ट के सेक्शन-70 का संशोधन करते हुए सक्षम सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी कंप्यूटर संसाधन को प्रोटेक्टड या सुरक्षित सिस्टम घोषित कर सकती है।
इस कानून में किसी भी सुरक्षित सिस्टम को हैक करने वाले के खिलाफ दस वर्ष की सजा का प्रावधान भी किया गया है। इस धारा को और मजबूती देने के लिए दो नए सेक्शन 70-ए व 70-बी भी बनाए गए हैं। धारा 7-ए में साइबर सुरक्षा के लिए इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम या सीईआरटी आईएन का उल्लेख किया गया है।
साइट हैक होने या फिर किसी साइट से देश की एकता. अखंडता पर पड़ने वाले संभावित दुष्प्रभावों को रोकने के लिए यह संगठन तत्काल प्रभाव से ऐसी साइट को बंद करने या फिर साइट को हैक करने वाले के खिलाफ तकनीकी जांच शुरू करेगा। इस एक्ट के साथ ही साइबर अपराधों में जाने-अनजाने हिस्सा बनने वाले साइबर कैफों को पूरी तरह कानूनी दायरे में जाने के लिए सेक्शन-79 का उल्लेख किया गया है।
इसके साथ ही 79-ए सेक्शन भी एक्ट में शामिल किया गया है। यह सरकार को अधिकार देता है कि वह इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों के मूल्यांकन के लिए एक परीक्षक नियुक्त कर सके। यह परीक्षक ऐसे मामलों में अदालत को इलेक्ट्रॉनिक तकनीकियों को समझाएगा या फिर अदालत का सहयोग करेगा। संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री सचिन पायलट के अनुसार इस एक्ट में उन सभी बिन्दुओं को शामिल किया गया है जो साइबर अपराध है या फिर उन्हें प्रभावित करते है। इस एक्ट के संशोधन से पहले मंत्रालय के अधिकारियों ने लंबे समय तक विभिन्न देशों के अधिनियमों का अध्ययन करने के साथ ही जमीनी स्तर पर भी साइबर अपराधों का अध्ययन किया।
पायलट के अनुसार इस एक्ट के संशोधित रूप से अब पुलिस को भी ऐसे मामलों की जांच में खासी सहायता मिलेगी। पहले कंप्यूटर या साइबर से संबंधित कई तरह के अपराध के लिए आईपीसी या सीआरपीसी में व्याख्या नहीं थी, जिससे पुलिस या जांच एजेंसी उलझन में रहती थी। संशोधित एक्ट में सभी बिंदुओं को शामिल किया गया है, ताकि जांच प्रकिया में तेजी लाई जा सके। 27 अक्टूबर 2009 को किए गए इन संशोधनों को सरकार ने अधिसूचित भी कर दिया है, जिससे त्वरित आधार पर इनका उपयोग शुरू किया जा सके। इस एक्ट को संशोधित करते हुए सरकार ने न केवल देश में घटे विभिन्न तरह के अपराधों का आकलन किया, बल्कि दुनिया भर में मौजूद आईटी या साइबर अपराध नीति का भी अध्ययन किया। इस लंबी कवायत का उद्देश्य यह तय करना था कि कंप्यूटर या साइबर अपराध से जुड़ा कोई भी पहलू छूटने ना पाए।
मूल रूप से वर्ष 2000 में लाया गया सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम-2008 उस समय ई-कामर्स, इलेक्ट्रोनिक रूप में पैसे के लेन-देन, ई-प्रशासन के साथ ही कंप्यूटर से जुड़े अपराधों को ध्यान में रखकर लाया गया था। उस समय हुए अपराधों तथा घटनाओं को ध्यान में रखकर तैयार किए गए इस आईटी एक्ट की धाराएं अगले कुछ सालों में ही कंप्यूटर तथा इंटरनेट के बढ़ते प्रयोग और उससे जुड़े अपराधों की संख्या व विविधता के आधार पर कम पड़ने लगीं। जिसके बाद सरकार ने मौजूदा इंटरनेट अपराधों व उसके लिए विश्व स्तर पर उपलब्ध कानूनों की तर्ज पर इस एक्ट में संशोधन कर इसे समकालीन तथा ज्यादा प्रभावी बनाने का निर्णय किया। जिसके बाद इसके मौजूदा प्रावधानों को और अधिक सख्त करने के साथ ही उसके स्वरूप को भी व्यापक किया गया, ताकि कंप्यूटर अपराध से जुड़ा हर पहलू इसमें शामिल हो सके।
आईटी एक्ट के संशोधन में कुल 52 धाराएं है। जिसमें हर पक्ष को शामिल किया गया है। इस संशोधन के दौरान यह भी ध्यान रखा गया कि यह यूनिस्रिटल या युनाइटेड नेशन कमीशन आन इंटरनेशनल ट्रेड लॉ के अनुरूप भी हो। युनिस्रिटल विश्व स्तरीय कानून है। एक्ट में संचार उपकरण की व्याख्या को भी शामिल किया गया। कंप्यूटर या इंटरनेट नेटवर्क पर इस उपकरण के बिना कार्य करना मुमकिन नहीं है। इसको ध्यान में रखकर संचार उपकरण को कानूनी परिधि में शामिल किया गया, जिससे इसे उल्लेखित कर उसके अनुरूप भी कानूनी प्रक्रियाएं शुरू की जा सके। इसी तरह इंटरमिडरी व सेवा प्रदाता को भी एक्ट में उल्लेखित किया गया। इसके तहत सभी सेवा प्रदाता, वेब होस्टिंग सेवा लेने वाले, सर्व इंजन, ऑन लाइन नीलामी साइट व साइबर कैफे को भी शामिल किया गया है, जिससे कोई भी सेवा प्रदाता कानूनी परिधि से बाहर न रहे।
इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर के बढ़ते अपराधों तथा धोखाधड़ी को देखते हुए संशोधित एक्ट में 3-ए सेक्शन को बाकायद उल्लेखित किया गया है। एक्ट में डाटा सुरक्षा व उसकी निजता को सुनिश्चित करने के लिए डाटा सिक्यूरिटी एंड प्राइवेसी को नामित कर एक नया सेक्शन 43-ए लाया गया है, जो डाटा लीकेज होने पर पीड़ित को मुआवजे का अधिकार देता है। इस सेक्शन के तहत केन्द्र सरकार को यह विशेष अधिकार दिया गया है कि यह चाहे तो विभिन्न संवेदनशील डाटा के मामलों में सुरक्षा को लेकर विशेष नियम या प्रावधान घोषित कर सकती है।
गोपनियता भंग करके सूचना जारी करने को लेकर सेक्शन 72-ए भी एक्ट में शामिल किया गया है। ब्रीच ऑफ काफीडेसलिटी, डिस्कलाजर ऑफ इंफोरमेशन के नाम से नामित यह सेक्शन 43-ए सेक्शन का ही अगला कदम है।

सोमवार, 11 जनवरी 2010

अल्लाह

मलेशिया ने सोमवार को गैर मुस्लिमों को अल्लाह शब्द का उपयोग न करने देने के अपने फैसले का बचाव किया। देश में इस विवाद के फैलने के बाद एक और चर्च पर हमला किया गया। इसके साथ ही देश में हमले का शिकार बने चर्चों की संख्या नौ हो गई है।
सरकार ने अल्पसंख्यकों के ईश्वर शब्द के अनुवाद स्वरूप अल्लाह शब्द के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन बाद में अदालत ने इस फैसले को पलट दिया, जिसके बाद से देश में संघर्ष का दौर शुरू हो गया है। गृह मंत्रालय के महासचिव महमूद आदम ने संघर्ष के बारे में विदेशी कूटनीतिज्ञों को जानकारी देने के बाद कहा कि वे जानना चाहते हैं कि जब इसाई इस शब्द को इंडोनेशिया और पश्चिम एशिया में उपयोग कर सकते हैं, तो यहां इस शब्द को सीमाओं में क्यों बांधा जा रहा है।
आदम ने कहा वे यहां की स्थिति नहीं समझ रहे, वे सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि जब इस शब्द को दूसरे देशों में अनुमति दी जा सकती है तो यहां क्यों नहीं। उन्होंने कहा कि आप सेब की सेब से और संतरे की संतरे से तुलना कर सकते हैं। हमारी भूमि दूसरे देशों से अलग है। यहां के मलय दूसरे देशों के मुस्लिमों से अलग हैं।
कर्मकांड से होती है मन की शुद्धि हिंदू संस्कृति मूलत: वैदिक संस्कृति है। इसमें वेदों को ही प्रमाण माना गया है। वेदों का तीन खंडों में विभाजन विषय के अनुसार किया गया है- कर्मकांड, उपासना कांड और ज्ञानकांड। जैसा कि नामों से ही प्रकट है, कर्मकांड में कर्म, उपासनाकांड में उपासना व ज्ञानकांड में ज्ञान का विवेचन है।
वेदों का यह संदेश है कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य परम सत्य को जानना और उसको प्राप्त करना ही है। परम सत्ता का ज्ञान प्राप्त करने में ही मनुष्य जीवन की सार्थकता है। इस विषयोपभोगमय संसार में हलके-फुल्के ढंग से जीवन व्यतीत कर लेना ही मनुष्य के लिए पर्याप्त नहीं है। परम सत्य को जानने के लिए मन को तैयार करना, उसे शुद्ध करना अपेक्षित है। वेदों के प्रथम विभाग कर्मकांड का यही विषय है-मन को शुद्ध कैसे किया जाए। मन की शुद्धि को कैसे प्राप्त किया जाए।
हम इस संसार में विभिन्न प्रकार की स्थितियों में, अलग-अलग प्रकार से कर्म करते हैं, प्रतिक्रिया करते हैं। यह स्पष्ट है कि हमारे कार्य और प्रतिक्रियाएं केवल वस्तुगत ही नहीं होते हैं। अधिकतर वे हमारे पूर्वग्रहों से, हमारी व्यक्तिगत रुचि-अरुचि से प्रभावित एवं संचालित होते हैं। अनेकानेक जन्मों में सूक्ष्म संस्कार और अंतर्निहित वृत्तियों के रूप में संजोई हुई अनेक प्रकार की वासनाएं हमारे भीतर हैं। हम वासनानुकूल कर्म करते हैं, विवेकसम्मत नहीं। फलस्वरूप हम अपनी उस रुचि-अरुचि को और दृढ बना देते हैं। इस प्रकार हम अपने मन की अशुद्धि को ही बढाते जाते हैं। हम जो भी कार्य करते हैं, जो भी प्रतिक्रिया करते हैं उसमें हमारी वासनाएं ही अभिव्यक्त होती दिखाई देती हैं।
दैनिक अनुशासन
प्रश्न यह है कि हम अपने मन को शुद्ध करें तो कैसे करें? वेदों के कर्मकांड में इसका उत्तर है। इसकी विधि वहां समझाई गई है। वास्तव में कर्मकांड के द्वारा जो मन की शुद्धि होती है, उसका सीधा संबंध उस एकाग्रचित्त स्थिति से है जो वेदों के उपासना कांड के अनुसार अभ्यास करने से अर्जित की जाती है। जब तक मन काम, क्रोध, आसक्ति, राग-द्वेष आदि से भरा होता है, तब तक वह इन संवेगों से उद्वेलित होता रहता है। जिस सीमा तक चित्त शुद्ध हो जाता है, उस सीमा तक वह शांत और एकाग्र होने लगता है। देखना यह है कि मानसिक शुद्धि के इस लक्ष्य को प्राप्त करने में कर्म किस प्रकार सहायक है।
अधिकतर लोगों का यही अनुमान है कि कर्मकांड में केवल विधि-विधान की बातें होती हैं। होम, हवन, यज्ञ अथवा पूजा को ही कर्मकांड समझा जाता है। इसलिए कर्मकांड शब्द से हम घबराते हैं और ऐसा सोचते हैं कि भला हम इतने यज्ञ आदि करने में कैसे समर्थ हो सकते हैं? लेकिन यह एक भ्रामक सोच है। कर्मकांड में, विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न कर्मो का निर्देश है। इस प्रकार के कर्म शास्त्रविहित कर्म अथवा काम्य कर्म कहलाते हैं। किसी इच्छा के फलस्वरूप किसी विशेष लक्ष्य प्राप्ति के उद्देश्य से ये किए जाते हैं, इसलिए इनमें विकल्प है। जैसे, कुछ यज्ञादि स्वर्ग प्राप्ति के हेतु से किए जाते हैं। जिसे स्वर्गप्राप्ति की कामना हो उसके लिए ज्योतिष्टोम यज्ञ का विधान है। अन्य यज्ञ, धन वैभव प्राप्ति अथवा संतान प्राप्ति के लिए हैं। ये विधि-विधान किसी खास इच्छा की पूर्ति के लिए निर्दिष्ट हैं। इन्हें करने का कोई अर्थ तभी है, जबकि उस काम्य पदार्थ को पाने की इच्छा हो। नहीं तो इस प्रकार के यज्ञ निरर्थक हैं। यदि मुझे स्वर्ग जाने की इच्छा नहीं है, तो फिर मैं उसकी प्राप्ति का उपाय क्यों करूंगा? ठीक वैसे ही जैसे यदि कोई अमेरिका जाना ही नहीं चाहता तो वह अमेरिकी वीजा प्राप्त करने के लिए आवेदन पत्र क्यों भरेगा?
नित्य कर्म
दूसरे प्रकार के कर्म, नित्य कर्म कहलाते हैं। अपनी आयु के, अपनी अवस्था के अनुसार हमारे कर्तव्य निर्धारित हैं, जिन्हें मन के अनुशासन के निमित्त से हमें नित्य करना चाहिए। जैसे ब्रह्मचारी को नित्यप्रति गायत्री का जप करना चाहिए। गृहस्थ, वानप्रस्थी और संन्यासी सबके लिए अलग-अलग प्रकार के नित्य कर्तव्यों का विधान है। गृहस्थी में रहने वाले, आध्यात्मिक उन्नति हेतु सांसारिक जीवन त्याग देने वाले और रात-दिन आत्मचिंतन में लगे रहने वाले के नित्य कर्म, प्रतिदिन के कर्तव्य अलग-अलग प्रकार के होते हैं। ये कर्तव्य इसलिए हैं कि जिससे हमारा जीवन अनुशासित हो सके, क्योंकि हम लोग अपने जीवन में, व्यवहार में बेहद निरंकुश हो गए हैं। अनुशासनविहीन होने का अर्थ है निरंकुश होना। जब हम चाहते हैं तब सोते हैं, जब उठना चाहते हैं, उठते हैं, जब चाहते हैं खाने लगते हैं, भले ही भूख लगी हो या नहीं। चीजों को जहां थोडा सस्ता बिकते देखा, ख्ारीदने लगते हैं, भले ही वे हमारी जरूरत की हों अथवा नहीं। हम तमाम चीजों को केवल इसलिए इकट्ठा कर लेते हैं, क्योंकि आसानी से प्राप्त हो रही हैं और हम उन्हीं में आसक्त रहने लगते हैं।
मुख्य बात यह है कि हमारे जीवन में अनुशासन होना चाहिए। जैसे यदि सुबह नींद खुलते ही हमारी इच्छा हो कि एक प्याली चाय या कॉफी मिले, लेकिन हम यह नियम बना लें कि जब तक एक माला जप नहीं कर लेंगे, चाय-कॉफी नहीं पिएंगे, यही अपने आपमें एक बडी उपलब्धि है। यदि हम इस प्रकार का कोई भी अनुशासन अपना लें तो हमारा मन नियंत्रण में आने लगता है। अनुशासन कोई भी हो, दरअसल इनके माध्यम से हमको अपनी इच्छाओं के वेग को धीरे-धीरे संयमित करना सीखना है। यह महत्वपूर्ण बात है। काम्य कर्म तब संपन्न किए जाते हैं जब कुछ विशेष प्राप्त करना होता है। नित्य कर्म दैनिक अनुशासन वाले कर्तव्य हैं, जो हमारी अवस्था के अनुसार निर्धारित होते हैं, चाहे हम विद्यार्थी हों, गृहस्थ हों, अवकाश प्राप्त वानप्रस्थी हों, या संन्यासी-वैरागी कोई भी हों। शास्त्र का यह आदेश है कि हमें इन कर्तव्यों का अवश्य ही पालन करना है। केवल किसी विशिष्ट परिस्थिति में ही इनमें ढील की गुंजाइश है।
लेकिन हम लोगों के जीवन में हो क्या रहा है, ठीक इसके विपरीत। जैसे अगर हम अधिक थक गए हैं या बीमार हैं तो हमें अधिक सोने की छूट मिल जाती है। लेकिन शायद ही कभी एक ऐसा निश्चय करते हैं कि जरा जल्दी उठ जाएं। जिससे कि कोई खास अच्छा काम कर सकें, या भगवान की पूजा कर सकें। दूसरे शब्दों में कहें तो यह कि केवल कभी-कभी हम इस प्रकार के नियम के पालन की बात सोचते हैं। जो अपवाद है वह तो बन गया है नियम और जिसे होना चाहिए था नियम, वह बन गया है अपवाद। यही कारण है कि हमारे संकल्प में शक्ति नहीं है और जब हम जीवन में एक भी अनुशासन का पालन नहीं कर सकते तो जब बडी चुनौतियों का सामना करना पडता है तो घबरा जाते हैं और अपने आपको कोसना शुरू कर देते हैं। जब हम किसी नियम का दृढता से पालन करते हैं तो देखते हैं कि हमारा संकल्प बहुत शक्तिशाली हो गया है। हम किसी भी एक नियम का जीवन में दृढता से पालन कर लें, तो तमाम अन्य पक्ष स्वत: नियमित हो जाएंगे और हमारे नियंत्रण में आ जाएंगे। इन नित्य कर्मो के पालन से हम क्रमश: अपने मन को संयमित करने में सफल होते जाते हैं और अपने मन पर हमारा अधिकार हो जाता है।
दूसरों के द्वारा निर्धारित कर्म
तीसरे प्रकार के कर्तव्य कर्म वे हैं जो हमारे लिए दूसरों के द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। जैसे माता-पिता, गुरु, शासन या सरकार, कार्यालय या नौकरी के स्थान के द्वारा हमारे लिए कुछ कर्तव्य निर्धारित होते हैं। एक युवक अपने माता-पिता के आदेशों की अवहेलना कर सकता है, लेकिन जब वह बाहर कहीं काम ढूंढने निकलता है, तो जहां भी वह काम करेगा, वहां उसे अपने स्वामी की आज्ञा माननी पडेगी। इस प्रकार एक स्थिति में भले ही हम विद्रोह करें, लेकिन कहीं भी हम जाएंगे, कोई न कोई कर्तव्य करने को हमें वहां बाध्य होना पडेगा। सच बात यह है कि हम किसी की इज्जत तभी करते हैं जब वह अपने कर्तव्यों के प्रति सजग होता है और ईमानदारी व परिश्रम से उन्हें पूरा करता है।
हम यदि अपना व्यापार आरंभ करें या कोई कारखाना खोलें और उसमें बहुत से लोगों को काम दें, तब हम अपने उन कर्मचारियों से क्या अपेक्षा करते हैं? क्या हम यह नहीं चाहते कि सब हमारा कहना मानें और परिश्रम से काम करें? क्या हम उस कर्मचारी को बर्दाश्त करेंगे जो अयोग्य है, अनुशासनविहीन है, कामचोर है, आलसी है? कुछ लोग समझते हैं कि धन ही सब कुछ है, पर जिनके कारण हम दूसरों की वाकई इज्जत करते हैं, वे हैं जीवन के महान गुण- ईमानदारी, वफादारी, समय की पाबंदी।
समस्या यह है कि हम इन सब गुणों को दूसरों में ही देखना चाहते हैं, दूसरों से ही अपेक्षा करते हैं कि उनमें अच्छी बातें हों। स्वयं में इन गुणों के विकास के लिए प्रयत्नशील नहीं होते। हम धन कमाने के लिए खुद तो कुछ भी भला-बुरा करने को तैयार रहते हैं, लेकिन अपने खजांची में पूरी-पूरी ईमानदारी देखना चाहते हैं। हम अपने कर्मचारियों से वफादारी और ईमानदारी की अपेक्षा करते हैं, भले ही स्वयं वैसे न हों। ये महान गुण हैं जिनकी हम प्रशंसा करते हैं, जिनके कारण हम दूसरों का आदर करते हैं।
वही व्यक्ति सफल होता है जिसका जीवन नियमित एवं अनुशासित होता है। बिना अनुशासन के सफलता पाना असंभव है। सारी समस्याएं ही समाप्त हो जाएं यदि केवल प्रत्येक व्यक्ति इस प्रकार सोचने लगे कि ये अच्छे गुण मुझमें विकसित हों। यह बहुत महत्वपूर्ण बात है। मुश्किल यह है कि हम समस्याओं के इतने आदी हो गए हैं कि यदि किसी समय अचानक कोई समस्या शेष न दिखे तो हम घबरा जाएंगे और सोचने लगेंगे कि अब हम करें क्या?
वेद हमें बताते हैं कि हमें अपने कर्तव्य कर्मो को दृढता से संपन्न करना चाहिए, भले ही वे हमारे दैनिक साधारण नियम हों, अथवा हमारे लिए दूसरों के द्वारा निर्धारित किए गए कर्तव्य कर्म हों। कभी यह मत देखो कि दूसरे क्या कर रहे हैं, क्या नहीं कर रहे हैं, केवल अपने कर्तव्य कर्मो के प्रति सावधान रहो।

शनिवार, 9 जनवरी 2010

पहले शाही स्नान में नहीं शामिल होंगे वैरागी अखाड़े

महाकुंभ के पहले शाही स्नान पर वैरागी अखाड़े शामिल नहीं होंगे। सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए वैरागियों की पूरी फौज इस दौरान वृंदावन में डेरा डालेगी। पहला स्नान वैरागियों का वृंदावन में ही होगा। वहां पर बसंत पंचमी के दिन ध्वजारोहण और 28 फरवरी को समापन होगा। इसके बाद वैरागियों की तीनों अणियां और अठारह अखाड़ों का लाव-लश्कर कुंभ स्नान के लिए तीर्थनगरी हरिद्वार के लिए रवाना होगा। मान्यता है कि वैरागियों में चार प्रमुख अणियां हुआ करती थीं। इनमें एक द्विविद के नाम से अणि थी। द्विविद को अपनी शक्तिका घमंड हो गया और वह अत्याचारी हो गया। इससे क्रोधित होकर भगवान बलराम ने वृंदावन में हल से उसका वध कर दिया। इस तरह से द्विविद के अत्याचार से सभी को मुक्तिमिली और अणियों का चतुष्कोण टूटकर तीन अणियों में तब्दील हो गया। उसी समय यह तय हुआ था कि हरिद्वार और प्रयाग में जब-जब कुंभ का आयोजन होगा, उसी बीच में वृंदावन में वैरागियों का भी कुंभ होगा। हरिद्वार में महाकुंभ का आयोजन चौदह जनवरी के स्नान पर्व से शुरू हो रहा है। इसी बीच वृंदावन में वैरागियों के कुंभ की शुरुआत हो रही है। वैरागियों का वृंदावन में बसंत पंचमी यानि 20 जनवरी को ध्वजारोहण होगा। फिर वैरागियों की देश भर की सारी जमातें यहीं अखाड़ा जोड़ेंगी। 28 फरवरी तक वैरागी अखाड़े वृंदावन में ही रहेंगे। ऐसे में तीर्थनगरी में होने वाले पहले शाही स्नान यानि 12 फरवरी को वैरागी अखाड़े स्नान में शामिल नहीं हो सकेंगे। वृंदावन के कुंभ के समापन के तुरंत बाद देश के वैरागियों का लाव-लश्कर तीर्थनगरी की ओर रवाना होगा। वैरागी कैंप सहित अन्य जगहों पर देश से जुटे साधु-संतों का तंबुओं में डेरा होगा। जब वृंदावन से रवानगी होगी तो महत्वपूर्ण तीन अणियों और अठारह अखाड़े के साधु-संत भी तीर्थनगरी पहुंचेंगे। माना जाता है कि वैरागियों के आगमन के साथ ही महाकुंभ चरम पर पहुंच जाता है। अचानक वैरागी कैंप का कई किलोमीटर क्षेत्र साधु-संतों के क्रियाकलापों में डूब जाएगा।

रिश्तों का भ्रम

 इस संसार का हर व्यक्ति रिश्तों के जाल में जकड़ा हुआ है। रिश्तों का बोझ सिर पर लिए दिन रात चल रहा है। यह बोझ कभी हलका होता ही नहीं। जब भी वह आगे बढ़ने का प्रयास करता है, रिश्ते उसे पीछे धकेल देते हैं। वास्तविकता यह है कि ये सारे सांसारिक रिश्ते एक भ्रम हैं। शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा मिले जिसके सांसारिक रिश्ते जीवनपर्र्यत साथ रहें। संसार के सारे रिश्ते स्वार्थ से जुड़े हैं। हमारा रिश्ता परिवार, धन, मान-अपमान और पद-प्रतिष्ठा से जुड़ा है। जहां स्वार्थ की पूर्ति नहीं हुई, वहीं रिश्तों में दरार पड़ने लगती है। ये रिश्ते भी बड़े अजीब होते हैं, न छोड़ते बनता है और न निभाते ही बनता है। इन बातों के कहने का तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि हम संसार में रिश्ते न जोड़ें और संसार छोड़कर विरक्त हो जाएं। जीवन है तो रिश्ते भी रहेंगे। हां, इन रिश्तों का निर्वाह अपनी शक्ति द्वारा सन्मार्ग पर चलते हुए करना मनुष्य का धर्म है। रिश्तों के भंवर जाल में फंसकर कब तक जीवन व्यर्थ करेंगे? इस तथ्य पर भी विचार करना आवश्यक है। आत्मोत्थान के लिए भी कुछ करना होगा। ऐसा रिश्ता ढूंढना होगा जो स्थायी हो आत्मोत्थान के मार्ग पर ले चले। वह रिश्ता है ईश्वर का। ईश्वर का रिश्ता ही श्रेष्ठ है। यह यदि एक बार जुड़ गया तो कभी टूटेगा नहीं। रिश्ते निभाए जाते हैं, ढोए नहीं जाते। जब ये रिश्ते बोझ बन जाएं तो उन्हें उतारकर फेंकना ही श्रेष्ठ है। सांसारिक रिश्ता ढोया जाता है। कोई लाख प्रयास करे ये निभ नहीं पाते। ईश्वर के साथ जुड़े रिश्ते जन्म जन्मांतर के लिए होते हैं। इसका एक स्पष्ट उदाहरण देखें-जब व्यक्ति उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंचता है, रोगग्रस्त होकर असहाय हो जाता है तो रिश्ते काम नहीं आते। वह केवल आर्तभाव से ईश्वर को पुकारता है। सारे सांसारिक रिश्ते धोखा दे जाते हैं। तो क्यों न हम समय रहते ईश्वर से रिश्ता जोड़ लें, ताकि बाद में पछताना ही न पड़े। संत तुलसीदास जी ने आगाह किया है- एक भरोसो, एक बल, एक आस, विश्वास। एक ईश्वर ही है जो जीव की रक्षा करता है। उसे हर दु:ख द्वंद्व से बचाता है। जिसका रिश्ता एक बार ईश्वर से जुड़ गया, वह निश्चिंत हो जाता है। अत: ईश्वर से रिश्ता जोड़ने के लिए सतत प्रयत्नशील रहना हितकर होगा।