गुरुवार, 4 जून 2009

गीता के सभी पात्रों के अलगअलग स्वरूपों में दानियों का एक स्वरूप कर्ण का हे कर्ण के बारे में खा जाता हे की उसे जन्मते ही उस की माँ ने लोक लजा के कारण त्याग दिया था |कहानी को शायद सभी जानते हे आज के ऋषि -मुनि ,गुरु -घंटाल महाभारत के काल जेसे सामर्थ वान नही रहे |मानलो किसी की आस्था का ही अगर सवाल हो -तो भी इस सचाई को नकारा तो नही जा सकता की तब के महापुरुष आजके महा पुरुषों की अपेक्षा अधिक विद्वान-सामर्थ वान रहे थे आज के महा पुरुषों की तरह उस युग के एक महा -पुरूष कर्ण की माता कुंती के पिता के महल में पधारे कुंती ने उन की खूब सेवा की |कुंती की सेवा से परसन हो उन्हों ने कुंती को एक मन्त्र थमा दिया और कहा इस मन्त्र को पड़ जिस देवता को पुकारो गी वो उपस्थित हो तुम्हारी मनो कामना पुरी करे गा |(आज भी ऐसे लोग समाज में मिल जाते हे )एक दिन कुंती ने सूर्य को देख मन्त्र पड़ ही डाला |सूर्य देव उसी समय उपस्थत हो गये |सूर्य देव ने आते ही कुंती को कहा ,मुझे बुलाया हे तो मेरा भोग मुझे दो नही तो में तमको श्राफ दे दुगा (आज के महा -पुरूष भी मन्त्र पकडा देते हे परन्तु यह नही बताते कि मन्त्र के देवता का भोग क्या हे -इनके शिष्य भी कुंती कि भांति फंस कर अपना और अपने बाल-बचों को मुसीबत में धकेल रहे हे ).ऐसे कर्ण का साथ कृष्ण ने तब नही दिया था अब तो बात ही और हे में यह नही कहता हमारे शास्त्र कहते हें दानी कर्ण जेसा दानवीर भी कोई आज नही हे परन्तु कर्ण के दान द्वारा प्राप्त पुन का फल भी कर्ण को नही बचा सका | बार तो उसे मरने को अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ यह भी बताने का प्रयास किया कि प्रतिज्ञा भी नही करनी चाहिए |शास्त्रों में करोडों का दान तभी सफल होता बताया गया हे जब साथ में दक्षिण लगी हो इस का परमं पवित्र प्रमाण महा राजा हरीश चन्द्र के अतिरिक्त और कोंन हो सकता हे |गीता में आगे चल कर भगवान दान के बारे में भी बात करें गे

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