मंगलवार, 2 जून 2009

स्वरूप

गीता में दोनों पक्षों की सेना में सम्लित योद्धाओं के स्वरूपों कर्मों को भी विचारा जाए तो अलग किस्म का अनुभव प्राप्त होता हे ,जेसे युद्घ भूमि में निर्बलों का कोई काम ही नही नही चारों और ध्नुधार्री बलशाली भीम अर्जुन जेसे शूरवीर सत्यकी -विराट जेसे महारथी काशीराज जेसे राजा महाराजा मनुष्यों में श्रेष्ट पराक्रमी बालक अभिमन्यु सभी के स्वरूपों को देखें तो यही पता चलता हे की यह सभी पांडवों सहित देवताओं के ही अंश थे कर्ण दानवीर और युध्क्ला के विद्वान गुरु -----------द्रोणाचार्य संग्राम विजयी कृपा चारिय अश्व्त्धामा भूरिश्रवा युद्घ के माहिर लोग्हे परन्तु प्रतिज्ञा वान भीष्म पितामा यंत्र मन्त्र विशेशग्य द्रोणाचार्य तपस्वी अर्जुन सत्य वादी युधिष्टर अर्थात (दानी-ज्ञानी -तपी -बली-प्रतिज्ञा करने वाले देव -पुत्र प्रभु कृष्ण के द्वेषी चाहने वाले सगे सम्बन्धी छोटे बडे वे सभी )धर्मात्मा विद्वान समर्थवान इस यूह में क्यों मरे गये क्या भगवान को दानी कर्ण पसंद नही थे ?एक और घटना सत्यवादी हरीश चन्द्र की हे जो साबित करती हे की बिना dkshina के -राज पाठका दान भी व्यर्थ होजाता हे Iwh बलशाली bl भी bekar साबित हुआ जो nihton और mjlumon pr julm krta rh a prtiya or snklp wiklpon

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