बुधवार, 17 जून 2009

अध्याये दो

७२ श्लोकों का एक आध्याये संजय कहते हें की अर्जुन के प्रति मधु सुदन यह वचन कहते हें |अर्जुन तझे समय -असमय का कोई ज्ञान ही नही यूँ ही मोह रूपी प्रकृति में फंस रहा हे | तो ऐसा श्रेष्ठ पुरूष करते हे उन्हें ऐसा करनाही चाहिए ,ऐसा करने से तो कोई लाभ ही होना हे कोई यश ही प्राप्त होना हे -------इसी श्लोक ने सारा महाभारत खड़ा करदिया अगर विचार किया जाए तो भगवान की चतुराई का ज्ञान हो जाता हे |अगर समये -असमय के शब्दों को भगवान कहते तो मोक्ष का मार्ग आसन हो जाता ,मनुष्य कर्म बंधन से मुक्त होचुका होता | कीर्ति की जरूरत हो ती स्वर्गकी अपने आप निश काम कर्म हो जाते समय-कालचक्र ने सब कुछ मनुष्य से ले लिया बे कार बना दिया (समये की जान कारी हेतु ज्योतिष -वदिया को प्रगट करदिया )

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