शनिवार, 21 अगस्त 2010

शोक

शोक

हिंदू धर्म. मौत अंत "अंतिम


हिंदू में वर्णित शोक धर्म शास्त्रों.  यह शरीर के अंतिम संस्कार के बाद शुरू होता है तुरंत और "दिन के तेरहवें सुबह समाप्त होता है पर".  परंपरागत रूप से शरीर के 24 घंटे के भीतर मौत के बाद अंतिम संस्कार होता  है, तथापि,  सूर्यास्त के बाद अन्यिम संस्कार का आयोजन  नहीं कर ते  हैं | सूर्योदय से पहले.किया जाता हें |  मृत्यु के तुरंत बाद, एक तेल चिराग जला कर  मृतक के पास रखा जाता  है,  इस दीप जल तीन दिनों के लिए रखा है.तथा  जिन्दगी मौत के साथ सहयोगियों कुल के लोग अनुष्ठान अशुद्धता मृतक के खून के परिवार में पुरुष लोग  तत्कालसर को मुंडवा लेते हैं .शुधि तक  के दिनों  दौरान इन शोक के दिनों में  कोई भी धार्मिक समारोह नही किया जाता,तीर्थ  यात्रा नहीं मंदिरों, संतों की सेवा नहीं करनी  चाहिए (अपवित्र आदमी), भीख नहीं देते हैं, पवित्र ग्रन्थों को पढ़ने के लिए आज्ञा केवल  पवित्र ग्रंथों को  सुनानाचाहिए , न ही वे विवाह जैसे सामाजिक कार्य शामिल कर सकते हैं, मृतक के परिवार आदि दलों की उम्मीद में आने के लिए किसी भी मेहमानों खाद्य या पेय की सेवा नहींकी जाती  है.. यह प्रथा है कि मेहमानों  भी नहीं खाया करते उस  घरका  जहाँ मौत हुई होती है  शोक ग्रस्त  परिवार के लिए एक दिन में दो बार स्नान  आवश्यक हैं, एक आसान सादा  शाकाहारी भोजन खाने के लिए दिया जाता हें .धरती पर सोते हेँ >संस्कार केने वाला व्यक्ति सन्यासियों जेसा पहरावा पहनता हें .उसकी जीवन संगनी ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए इस कर्म में साथ निभाती  हें 
   इन दिन  मृत्यु, वाले परिवार में खाना  पकाना नहीं होता  है, इसलिए आमतौर पर परिवार और दोस्तों. के लिये  भोजन का प्रबंध  मित्र लोग करते हेँ  शोक अवधि के दोरान  सफेद कपड़ों  को पहनने की प्रथा हें ,फिर अगले  दस दिनों तक परिवार के पुरुष सदस्य बाल और दादी नही बनवाते और महिलाएं अपने बालों को नही धोती  dswaan  . इस दिन को दसवां   कहा जाता है इस दिन  कुछ वैदिक अनुष्ठानों शुरू करते  हेँ मृतक के मामले में युवा और अविवाहित था, "नारायण बाली" पंडितों द्वारा किया जाता है. |ब्रह्म भोज करवाते हेँ |
तेरहवें दिन के पर सुबह, एक श्रद्धा समारोह किया जाता है. . मुख्य समारोह मृतक शामिल होता हें | तब मुखाग्नि देने वाले से महा ब्राह्मण प्रसाद केरूप में  देवताओं के लिए और पूर्वजों के लिए पिंडो को दिलवाता हें  . तेराह दिनों के समारोह के बाद आमतौर पर, परिवार को पवित्र और परिवार के मंदिर में सभी मूर्तियों को दूध जल से नहलाया  , और फूल, फल, पानी और शुद्ध भोजन का भोग लगवाते हैं | देवताओं की पोशाक को बदला जाता हें . अब जा कर  परिवार के लिए शोक और दैनिक जीवन में वापस लौटने की अवधि आरम्भ होती हें |
अथ अशोच व्यवस्था
 अशोच दो प्रकार का होता हें              1 जनना शोक जिसे सूतक कहते हेँ 
                                                             2 मरना शोक जिसे पातक कहते हेँ 
गर्भ सत्रावादी शोक व्यवस्था = चार मॉस से chte माह  तक कागर्भ गिरने  से  गर्भपात और इस के बाद प्रसव कहा जाता हें| तिन माह तक का गर्भ गिरने पर तिन और 4 माह का गिरने पर 4 दिन का अशोच रहता जो पिता ,आदि सपिंड केवल स्नान मात्र से शुद्ध हो जाते हेँ पितादी स्पिंदों  को 3 दिन का सूतक कहते हेँ 
जननाशोच व्यवस्था   
सात महीने से लेकर किसी भी महीने में जन्म हो तो माता पितादी spindon को अपने अपने वर्ण के अनुसार पूरा अशोच[सूतक ] होता हें  ब्राह्मण को 10 दिन क्षत्रिय को 12 दिन वेश्य को 15 दिन और शुद्र को एक माह का सूतक रहता हें ,किन्तु माता को सूतक काल की स्माप्तिके बाद भी पुत्र जन्म होने पर 20 दिन कन्या होने पर 1 मॉस तक धर्म कर्म वर्जित कहा गया हें नाल छेदन के बाद  बाद के सूतक में जात कर्म का अधिकार भी नही रहता |
मृतोतपति  में विचार
यदि मरा हुआ बालक पैदा हो तो पितादी को वर्ण अनुसार सूतक होता हें ,बालक नाल छेदन के पहले ही मर जाए तो माता को १० दिन पिता को ३दिन नाल छेदन १० दिन अर्थात नाम संस्कार से पूर्व पितादी spindon को प्त्कीय सूतक में देव कर्म ,पितृ कर्म का भी अधिकार नही रहता 
मृताशोच -व्यवस्था
नामकरण  के बाद दाँत निकलने से पहले पिताको ३दिन मृत्शोच पातक रहता हें किन्तु स्नान मात्र से सपिंड शुद्ध हो जाते हेँ कन्या के मरने पर पिता को १दिन का पातक होगा 
          ध्यान रहे कि७से ३ वर्ष दन्त निकलने और मुंडन संस्कार ना हुए बालक के मरने पर माता -पिता को ३दिन स्पिन्ड़ो को १ दिन का पातक लगता हें , ३ वर्ष में मुंडन संस्कार हो गया हो तो बालक को जलाने कि जरूरत होगी 
कन्या  शोच -व्यवस्था 
सगाई से पहले १-३ दिन का सगाई के बाद विवाह से पूर्व पति और पिता के कुल ३ दिन का पातक कहा हें |यदि ब्वः के बाद पिता के घर प्रसूता  कन्या मरे तो माता पिता सहोदरों को ३दिन चचादी को १ दिन का पर पतीके कुल को पूर्ण पातक होता हें 
मातामह  -मातामही दोहित्र मरण पर विचार
 नाना मरे तो 3 नानी मरे तो १दिन का पातक होगा यज्ञोपवीत दोहत्रे के मरने पर नाना को ३दिन बिना यज्ञोपवीत १ दिन का पातक होता हें |
सास ससुर जामात्र पर अशोच विचार 
 जमाई के पास होने पर यदि सास ससुर मरें तो३ दिन का यदि पास ना हो तो जमाई को १दिन का पातक होता हें |जमाई के मरने पर १दिन का पातक होता हें |
ब्न्धुत्रय -विचार  
बुआ मोसी   मामी के पुत्रों को आत्म बांधव माता क़ी बुआ मामी मोसी को मातर्व बांधव कहते हेँ इन तीन प्रकार के बांधवों  में से किसी क़ी मृत्यु होने पर ३दिन का और इनकी बहन के मरने पर १दिन का पातकी शोक रहता हें 
 

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