शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

मंत्र और श्लोक

धार्मिक क्रियाओं में दो शब्द हमेशा आते हैं, मंत्र और श्लोक। कई लोग इसे एक ही मानते हैं लेकिन दोनों में बहुत अंतर है। कई लोग यह नहीं जानते है कि हम किसे मंत्र कहें और किसे श्लोक। इन दोनों के बीच का अंतर केवल संस्कृत जानने वाला ही कर सकता है। मंत्र और श्लोक दोनों अलग-अलग विषय हैं, इन्हें एक नहीं माना जा सकता। आइए जानते हैं कि दोनों में क्या अंतर है, हम किसे मंत्र कहें या किसे श्लोक।
[सब इंद्रियों के द्वारों को रोककर तथा मन को हृद्देश में स्थिर करके, फिर उस जीते हुए मन द्वारा प्राण को मस्तक में स्थापित करके, परमात्म संबंधी योगधारणा में स्थित होकर जो पुरुष 'ॐ' इस एक अक्षर रूप ब्रह्म को उच्चारण करता हुआ और उसके अर्थस्वरूप मुझ निर्गुण ब्रह्म का चिंतन करता हुआ शरीर को त्यागकर जाता है, वह पुरुष परम गति को प्राप्त होता है॥12-13॥ ]
दरअसल मंत्र और श्लोक दोनों ही होते तो संस्कृत में ही हैं, इनकी भाषा और व्याकरण भी लगभग समान होते हैं। अंतर इनकी भाषा और शैली का नहीं है। इनके लिखे जाने को लेकर है। मंत्र वह हैं जो सीधे मन से उत्पन्न हुए, उन्हें लिखकर नहीं बनाया गया। जैसे वेदों की ऋचाएं। वेदों में आई सारी ऋचाएं मंत्र कहलाती हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि वे स्वयं प्रकट हुई थीं, इन्हें किसी ने लिखा नहीं था। मन से उत्पन्न है इसलिए मंत्र कहलाते हैं।श्लोक का अर्थ ठीक इसके विपरीत है।
जो किसी के द्वारा लिखा गया हो, जिसे किसी ने रचा हो, उसे श्लोक  कहते हैं। जैसे भागवत या वाल्मीकि रामायण, महाभारत, ये ग्रंथ धरती पर रहने वाले ऋषि-मुनियों ने लिखे हैं। इसलिए इनमें आने वाले पद्य मंत्र नहीं कहे जा सकते है, ये श्लोक हैं। इन्हें लिखा गया है, ये खुद प्रकट नहीं हुए हैं।भगवान खुद गीता में कहते हेँ कि  क्रतु मैं हूँ, यज्ञ मैं हूँ, स्वधा मैं हूँ, औषधि मैं हूँ, मंत्र मैं हूँ, घृत मैं हूँ, अग्नि मैं हूँ और हवनरूप क्रिया भी मैं ही हूँ॥16॥
इस संपूर्ण जगत्‌ का धाता अर्थात्‌ धारण करने वाला एवं कर्मों के फल को देने वाला, पिता, माता, पितामह, जानने योग्य,  पवित्र ओंकार [  ॐ ]  तथा ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ॥17॥
दुनिया के जितने भी ज्ञात और अज्ञात धर्म हैं सभी में हमें मंत्र और मंत्र शक्ति के बारे अवश्य पढऩे को मिलता है। पुरानी किताबों में हमें उदाहरण सहित पढऩे को मिलता है कि मंत्रों की शक्ति से एक से बढ़कर एक अद्भुत और आश्चर्यजनक कार्य सम्पन्न किये जाते थे। जंगली जानवरों को वश में करना, चाहे जब बारिष ले आना, युद्ध में अपशत्रुओंने को मंत्र शक्ति से क्षण भर में नष्ट कर देना, लाइलाज बीमारियों कों मंत्र शक्ति से पल भर में ही हमेशा के लिये दूर कर देना यंहा तक कि मंत्र शक्ति की सहायता से मृत व्यक्तियों को भी जीवित करने के प्रामाणिक प्रसंग मिलते हैं।

लेकिन आज हम देखते हैं कि मंत्र तो वही हैं किन्तु उनके प्रयोग करने वाले पहले जैसे नहीं बचे। इसी कारण आज मंत्रों में निहित शक्ति लुप्त या गायब हो चुकी है। पहले के साधक मंत्र का प्रयोग करने से पूर्व स्वयं को साधते थे यानि सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, त्याग, पवित्रता जैसे अनिवार्य नियमों का पालन करते थे। तभी इन साधकों को मंत्र शक्ति का लाभ मिल पाता था। यदि आज भी कोई मंत्र की सच्चाई जानना चाहे तो उसे स्यवं साधना के अनिवार्य नियमों का पालन अवश्य ही करना होगा तभी सच्चाई सामने आ सकती है।अन्यथा साधक हानि ही उठाये गा

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