गुरुवार, 14 जनवरी 2010

कानून

सूचना प्रोद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम-2008 में हाल में हुए संशोधनों के बाद इंटरनेट के जरिए अश्लीलता एवं नग्नता परोसने तथा अन्य तरह के साइबर अपराधों पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।
सरकार ने इस कानून में संशोधनों के जरिए साइबर नग्नता को लेकर अधिनियम में सख्त कदम उठाए हैं। कानून की धारा 67-ए में इलेक्ट्रॉनिक रूप में नग्नता के लिए दंड का उल्लेख किया गया है।
पहली बार सरकार ने बाल नग्नता को लेकर एक नया सेक्शन 67-बी का उल्लेख कानून में किया है। इसका उद्देश्य इलेक्ट्रोनिक रूप में बच्चों के बीच नग्नता के प्रचार-प्रसार को रोकना तथा इलेक्ट्रॉनिक रूप में बच्चों के यौन शोषण में लगे लोगों को सजा दिलाना है। नग्नता को लेकर उल्लिखित दोनों ही धाराओं में पहली बार पकड़े गए व्यक्ति को पांच साल की सजा का प्रावधान है, जबकि दूसरी बार या अगली बार यह सजा सात साल तक की हो सकती है।
संशोधित कानून में प्रोटेक्टेड सिस्टम को लेकर भी व्याख्या की गई है। आईटी एक्ट के सेक्शन-70 का संशोधन करते हुए सक्षम सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी कंप्यूटर संसाधन को प्रोटेक्टड या सुरक्षित सिस्टम घोषित कर सकती है।
इस कानून में किसी भी सुरक्षित सिस्टम को हैक करने वाले के खिलाफ दस वर्ष की सजा का प्रावधान भी किया गया है। इस धारा को और मजबूती देने के लिए दो नए सेक्शन 70-ए व 70-बी भी बनाए गए हैं। धारा 7-ए में साइबर सुरक्षा के लिए इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम या सीईआरटी आईएन का उल्लेख किया गया है।
साइट हैक होने या फिर किसी साइट से देश की एकता. अखंडता पर पड़ने वाले संभावित दुष्प्रभावों को रोकने के लिए यह संगठन तत्काल प्रभाव से ऐसी साइट को बंद करने या फिर साइट को हैक करने वाले के खिलाफ तकनीकी जांच शुरू करेगा। इस एक्ट के साथ ही साइबर अपराधों में जाने-अनजाने हिस्सा बनने वाले साइबर कैफों को पूरी तरह कानूनी दायरे में जाने के लिए सेक्शन-79 का उल्लेख किया गया है।
इसके साथ ही 79-ए सेक्शन भी एक्ट में शामिल किया गया है। यह सरकार को अधिकार देता है कि वह इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों के मूल्यांकन के लिए एक परीक्षक नियुक्त कर सके। यह परीक्षक ऐसे मामलों में अदालत को इलेक्ट्रॉनिक तकनीकियों को समझाएगा या फिर अदालत का सहयोग करेगा। संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री सचिन पायलट के अनुसार इस एक्ट में उन सभी बिन्दुओं को शामिल किया गया है जो साइबर अपराध है या फिर उन्हें प्रभावित करते है। इस एक्ट के संशोधन से पहले मंत्रालय के अधिकारियों ने लंबे समय तक विभिन्न देशों के अधिनियमों का अध्ययन करने के साथ ही जमीनी स्तर पर भी साइबर अपराधों का अध्ययन किया।
पायलट के अनुसार इस एक्ट के संशोधित रूप से अब पुलिस को भी ऐसे मामलों की जांच में खासी सहायता मिलेगी। पहले कंप्यूटर या साइबर से संबंधित कई तरह के अपराध के लिए आईपीसी या सीआरपीसी में व्याख्या नहीं थी, जिससे पुलिस या जांच एजेंसी उलझन में रहती थी। संशोधित एक्ट में सभी बिंदुओं को शामिल किया गया है, ताकि जांच प्रकिया में तेजी लाई जा सके। 27 अक्टूबर 2009 को किए गए इन संशोधनों को सरकार ने अधिसूचित भी कर दिया है, जिससे त्वरित आधार पर इनका उपयोग शुरू किया जा सके। इस एक्ट को संशोधित करते हुए सरकार ने न केवल देश में घटे विभिन्न तरह के अपराधों का आकलन किया, बल्कि दुनिया भर में मौजूद आईटी या साइबर अपराध नीति का भी अध्ययन किया। इस लंबी कवायत का उद्देश्य यह तय करना था कि कंप्यूटर या साइबर अपराध से जुड़ा कोई भी पहलू छूटने ना पाए।
मूल रूप से वर्ष 2000 में लाया गया सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम-2008 उस समय ई-कामर्स, इलेक्ट्रोनिक रूप में पैसे के लेन-देन, ई-प्रशासन के साथ ही कंप्यूटर से जुड़े अपराधों को ध्यान में रखकर लाया गया था। उस समय हुए अपराधों तथा घटनाओं को ध्यान में रखकर तैयार किए गए इस आईटी एक्ट की धाराएं अगले कुछ सालों में ही कंप्यूटर तथा इंटरनेट के बढ़ते प्रयोग और उससे जुड़े अपराधों की संख्या व विविधता के आधार पर कम पड़ने लगीं। जिसके बाद सरकार ने मौजूदा इंटरनेट अपराधों व उसके लिए विश्व स्तर पर उपलब्ध कानूनों की तर्ज पर इस एक्ट में संशोधन कर इसे समकालीन तथा ज्यादा प्रभावी बनाने का निर्णय किया। जिसके बाद इसके मौजूदा प्रावधानों को और अधिक सख्त करने के साथ ही उसके स्वरूप को भी व्यापक किया गया, ताकि कंप्यूटर अपराध से जुड़ा हर पहलू इसमें शामिल हो सके।
आईटी एक्ट के संशोधन में कुल 52 धाराएं है। जिसमें हर पक्ष को शामिल किया गया है। इस संशोधन के दौरान यह भी ध्यान रखा गया कि यह यूनिस्रिटल या युनाइटेड नेशन कमीशन आन इंटरनेशनल ट्रेड लॉ के अनुरूप भी हो। युनिस्रिटल विश्व स्तरीय कानून है। एक्ट में संचार उपकरण की व्याख्या को भी शामिल किया गया। कंप्यूटर या इंटरनेट नेटवर्क पर इस उपकरण के बिना कार्य करना मुमकिन नहीं है। इसको ध्यान में रखकर संचार उपकरण को कानूनी परिधि में शामिल किया गया, जिससे इसे उल्लेखित कर उसके अनुरूप भी कानूनी प्रक्रियाएं शुरू की जा सके। इसी तरह इंटरमिडरी व सेवा प्रदाता को भी एक्ट में उल्लेखित किया गया। इसके तहत सभी सेवा प्रदाता, वेब होस्टिंग सेवा लेने वाले, सर्व इंजन, ऑन लाइन नीलामी साइट व साइबर कैफे को भी शामिल किया गया है, जिससे कोई भी सेवा प्रदाता कानूनी परिधि से बाहर न रहे।
इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर के बढ़ते अपराधों तथा धोखाधड़ी को देखते हुए संशोधित एक्ट में 3-ए सेक्शन को बाकायद उल्लेखित किया गया है। एक्ट में डाटा सुरक्षा व उसकी निजता को सुनिश्चित करने के लिए डाटा सिक्यूरिटी एंड प्राइवेसी को नामित कर एक नया सेक्शन 43-ए लाया गया है, जो डाटा लीकेज होने पर पीड़ित को मुआवजे का अधिकार देता है। इस सेक्शन के तहत केन्द्र सरकार को यह विशेष अधिकार दिया गया है कि यह चाहे तो विभिन्न संवेदनशील डाटा के मामलों में सुरक्षा को लेकर विशेष नियम या प्रावधान घोषित कर सकती है।
गोपनियता भंग करके सूचना जारी करने को लेकर सेक्शन 72-ए भी एक्ट में शामिल किया गया है। ब्रीच ऑफ काफीडेसलिटी, डिस्कलाजर ऑफ इंफोरमेशन के नाम से नामित यह सेक्शन 43-ए सेक्शन का ही अगला कदम है।

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