शनिवार, 9 जनवरी 2010

रिश्तों का भ्रम

 इस संसार का हर व्यक्ति रिश्तों के जाल में जकड़ा हुआ है। रिश्तों का बोझ सिर पर लिए दिन रात चल रहा है। यह बोझ कभी हलका होता ही नहीं। जब भी वह आगे बढ़ने का प्रयास करता है, रिश्ते उसे पीछे धकेल देते हैं। वास्तविकता यह है कि ये सारे सांसारिक रिश्ते एक भ्रम हैं। शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा मिले जिसके सांसारिक रिश्ते जीवनपर्र्यत साथ रहें। संसार के सारे रिश्ते स्वार्थ से जुड़े हैं। हमारा रिश्ता परिवार, धन, मान-अपमान और पद-प्रतिष्ठा से जुड़ा है। जहां स्वार्थ की पूर्ति नहीं हुई, वहीं रिश्तों में दरार पड़ने लगती है। ये रिश्ते भी बड़े अजीब होते हैं, न छोड़ते बनता है और न निभाते ही बनता है। इन बातों के कहने का तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि हम संसार में रिश्ते न जोड़ें और संसार छोड़कर विरक्त हो जाएं। जीवन है तो रिश्ते भी रहेंगे। हां, इन रिश्तों का निर्वाह अपनी शक्ति द्वारा सन्मार्ग पर चलते हुए करना मनुष्य का धर्म है। रिश्तों के भंवर जाल में फंसकर कब तक जीवन व्यर्थ करेंगे? इस तथ्य पर भी विचार करना आवश्यक है। आत्मोत्थान के लिए भी कुछ करना होगा। ऐसा रिश्ता ढूंढना होगा जो स्थायी हो आत्मोत्थान के मार्ग पर ले चले। वह रिश्ता है ईश्वर का। ईश्वर का रिश्ता ही श्रेष्ठ है। यह यदि एक बार जुड़ गया तो कभी टूटेगा नहीं। रिश्ते निभाए जाते हैं, ढोए नहीं जाते। जब ये रिश्ते बोझ बन जाएं तो उन्हें उतारकर फेंकना ही श्रेष्ठ है। सांसारिक रिश्ता ढोया जाता है। कोई लाख प्रयास करे ये निभ नहीं पाते। ईश्वर के साथ जुड़े रिश्ते जन्म जन्मांतर के लिए होते हैं। इसका एक स्पष्ट उदाहरण देखें-जब व्यक्ति उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंचता है, रोगग्रस्त होकर असहाय हो जाता है तो रिश्ते काम नहीं आते। वह केवल आर्तभाव से ईश्वर को पुकारता है। सारे सांसारिक रिश्ते धोखा दे जाते हैं। तो क्यों न हम समय रहते ईश्वर से रिश्ता जोड़ लें, ताकि बाद में पछताना ही न पड़े। संत तुलसीदास जी ने आगाह किया है- एक भरोसो, एक बल, एक आस, विश्वास। एक ईश्वर ही है जो जीव की रक्षा करता है। उसे हर दु:ख द्वंद्व से बचाता है। जिसका रिश्ता एक बार ईश्वर से जुड़ गया, वह निश्चिंत हो जाता है। अत: ईश्वर से रिश्ता जोड़ने के लिए सतत प्रयत्नशील रहना हितकर होगा। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें