शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

2 टिप्‍पणियां:

  1. क्या एक मानव मरने के पश्चात भी रो सकता है, हंस सकता है... बुद्धि इसे स्वीकार नहीं करती अपितु प्रकृति के भी विरोद्ध है यह बात..

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  2. safat alam taimi ने कहा… क्या एक मानव मरने के पश्चात भी रो सकता है, हंस सकता है... बुद्धि इसे स्वीकार नहीं करती अपितु प्रकृति के भी विरोद्ध है यह बात.. श्राद्धकर्म
    ज्योतिष की नजर में श्राद्ध

    मित्र 'आयु पुत्रान् यश: स्वर्ग कीर्ति पुष्टिं वलं श्रियम्। पशुन सौख्यं धन-धान्यं प्राज्नुयात् पितृपूजनात्।। ' इस मंत्र का उदाहरण देकरबताते हैं कि पत्रों को भी कष्ट होता है ,वह हंसते और रोते भी हैं तभी तो रूहों आत्माओं के प्रति सनातन धर्म में श्राद्ध पक्ष में अपने दिवंगत पितरों के निमित्त जो व्यक्ति तिल, जौ, अक्षत, कुशा, दूध, शहद व गंगाजल सहित पिण्डदान व तर्पणादि, हवन करने के बाद ब्राह्माणों को यथाशक्ति भोजन, फल-वस्त्र, दक्षिणा, गौ आदि का दान करता है, उसके पितर संतृप्त होकर साधक को दीर्घायु, आरोग्य, स्वास्थ्य, धन, यश, सम्पदा, पुत्र-पुत्री आदि का आशीर्वाद देते हैं। जो व्यक्ति जान-बूझकर श्राद्ध कर्म नहीं करता, वह शापग्रस्त होकर अनेक प्रकार के कष्टों व दु:खों से पीड़ित रहता है। अपने पूर्वज पितरों के प्रति श्रद्धा भावना रखते हुए पितृ यज्ञ व श्राद्ध कर्म करना नितांत आवश्यक है। इससे स्वास्थ्य, समृद्धि, आयु एवं सुख-शांति में वृद्धि होती है।

    शास्त्र में श्राद्ध करने का प्रत्यक्ष प्रमाण रूप में -----जिस समय श्रीराम, सीता, लक्ष्मण वनवास में थे, उस दौरान उन्होंने जंगल में अपने पूज्य पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया और बड़े श्रद्धा भाव से ब्राह्माण देवता बुलाकर चरण धोए। आसन पर बैठाकर भोजन, फल, दक्षिणा आदि संकल्प कराकर श्राद्ध कर्म किया। उस वक्त सीता जी स्वयं अपने हाथ से भोजन देने लगीं तो घूंघट सिर से मुख पर ओढ़ लिया। तब श्रीराम ने सीता से पूछा कि तुमने अचानक घूंघट क्यों ओढ़ा जिसके जवाब में सीता जी ने कहा कि मेरे ससुर राजा दशरथ जी आए एवं ब्राह्माण के मुख से ब्राह्माण के पेट में प्रवेश कर गए तो मैंने उनका सम्मान किया है, उन्हें प्रमाण करके उनका आशीर्वाद हासिल किया है।

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