गुरुवार, 23 सितंबर 2010

श्राद्ध




भाद्रपद की पूर्णिमा एवं अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक का समय पितृ पक्ष का माना जाता है। इस वर्ष श्राद्ध पर्व 7 अक्टूबर को समाप्त हो जाएँगे। इस दौरान मृत पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है। जिस तिथि को किसी पूर्वज का देहांत होता है उसी तिथि को उनका श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध के दौरान पंडितों को खीर-पूरी खिलाने का महत्व होता है। माना जाता है कि इससे स्वर्गीय पूर्वजों की आत्मा तृप्त होती है।

पुरुष के श्राद्ध में ब्राह्मण को तथा स्त्री के श्राद्ध में ब्राह्मण महिला को भोजन कराया जाता है। लोग अपनी श्रद्धा अनुसार खीर-पूरी तथा सब्जियाँ बनाकर उन्हें भोजन कराते हैं तथा बाद में वस्त्र व दक्षिणा देकर व पान खिलाकर विदा करते हैं।

सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर अपने पूर्वज का चित्र रखकर पंडित नियमपूर्वक पूजा व संकल्प कराते हैं। इस दिन बिना प्याज व लहसुन का भोजन तैयार किया जाता है। बाद में पंडित व पंडिताइन के श्रद्धापूर्वक पैर छूकर उन्हें भोजन कराते हैं।
भोजन में खीर-पूरी व पनीर, सीताफल, अदरक व मूली का लच्छा तैयार किया जाता है। उड़द की दाल के बड़े बनाकर दही में डाले जाते हैं। पंडित सर्वप्रथम गाय का नैवेद्य निकलवाते हैं। इसके अलावा कौओं व चिड़िया, कुत्ते के लिए भी ग्रास निकालते हैं।

पितृ अमावस्या को आखिरी श्राद्ध करके पितृ विसर्जन किया जाता है तथा पितरों को विदा किया जाता है।

कई जगहों पर अमावस्या के दिन पंडित बहुत कम मिलते हैं क्योंकि एक धारणा यह है कि श्राद्ध का भोजन या तो कुल पंडित या किसी खास ब्राह्मण को कराया जाता है।

कई जगह व्यस्त होने के चलते भी पंडितों की कमी रहती है। मान्यता है कि ब्राह्मणों को खीर-पूरी खिलाने से पितृ तृप्त होते हैं। यही वजह है कि इस दिन खीर-पूरी ही बनाई जाती है। 
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