गुरुवार, 23 सितंबर 2010

कौआ==पितृ पक्ष

कौआ सर्वहारी पक्षी है जो कहीं भी रह सकता है। इसकी प्रमुख जरूरत आवास और भोजन की है। बड़े पेड़ों पर रहने वाला यह पक्षी शहरों से इसलिए पलायन करने लगा है कि अब शहरों में इनके लिए सुरक्षित आवास नहीं रह गया है। शहर का तेजी से विस्तार और बड़े पेड़ों की कमी इसके लिए ज्यादा जिम्मेदार है। पितृ पक्ष और कौए के संदर्भ में कुछ ज्योतिषाचार्य क्या मानते है।                       पंडित विद्याधर बड़गैंया के अनुसार कौआ एक चाण्डाल पक्षी है। इसका पितरों से कोई संबंध नहीं है। फिर भी लोक रीति के अनुसार लोग पितरों की शांति के लिए कौए को पितृ पक्ष में भोजन कराते हैं। दरअसल सिर्फ कौए को ही नहीं सभी जीवों को भोजन कराने का विधान है।

पितृ पक्ष में भी कौआ, कुत्ता, गौ और अन्य जीव-जंतुओं को भोजन कराया जाता है। यह इसलिए कि सर्वे भवंतु सुखीनः अर्थात् सब सुखी रहें।

ज्योतिषाचार्य पं. वासुदेव शास्त्री कहते हैं कि रामचरित मानस में एक वर्णन है जिसमें इंद्र के पुत्र जयंत ने कौए का रूप धारण कर सीता जी की शक्ति की परीक्ष ली थी। उस समय भगवान राम ने उसकी एक आँख छीन ली थी और श्राप दिया था कि वर्ष भर में तुम्हें सिर्फ पंद्रह दिन ही स्वच्छ भोजन करने को मिलेगा, शेष दिन तुम गंदगी का भक्षण ही करोगे।

इसीलिए सिर्फ पितृ पक्ष में ही कौए को अच्छा खाने को मिलता है शेष दिन उसे गंदगी का ही भक्षण करना पड़ता है।

पं. हनुमान प्रसाद दुबे ज्योतिषाचार्य - पितृ पक्ष और कौए को लेकर कई किस्म की किवदंतियाँ है। शास्त्रों में इसके विशेष प्रमाण तो नहीं है लेकिन कौओं को पितर के रूप में माना जाता है। कौए का काला रंग होता है जो राहू-केतू का रूप माना जाता है।

राहू-केतू के कारण ही पितृदोष लगता है। इसलिए पितृ पक्ष में कौए को भोजन कराने से पितरों को शांति मिलती है और वे तृप्त होकर परलोक जाते हैं। 
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