सोमवार, 10 अगस्त 2009

फतवा ,हुक्मनामा, या प्रभु की आज्ञा ?

फतवे ,हुक्म-नामे ,धर्मिक आदेशो को क्या हम लोगों को भगवान आँख बंद कर के मोनने को कहते हें?...... ॥ क्या हिंदू ,मुसल मान,सिख ,ईसाईयों ---------की पवित्र किताबों में कही लिखा गया हे की इन आदेशों को बिना विचारे धर्म की लाभ -हानि को सोचे भगवान के द्वारा कहे गये वचनों को ही बदल डाला जावे ?......यदि कहीं ऐसा कुछ भी लिखा गया हे तो मित्रो मुझे जरुर बताना (आप की कृपा होगी )................ ॥ यह केसा हे जेहाद ..............................कसाब की भूख हडताल से ...................समझ में आता हे ........... । झूठ -मकारी का पुलिंदा ..................................................................गिरगिट की तरहां रंग बदलना यह केसा जेहाद हे ......यह किस धर्म का बचाव हे ?॥किस धर्म में ऐसा कहा गया ?की झूठ बोलना पुण्य का काम हे ? जरा पूछो तो उनसे जिनको जेहादी कहा जाता...जेहाद के नाम पर गुमराह किया जाता अब जरा इधर भी देख लें ॥जो जेहाद के लिए मरने मरने को हे आमदा ............मुम्बई पर हुआ एक जेहादी हमला ,कसाब जिन्दा पकडा गया बाकियों को मर गिराया पूछो जरा उनसे जिनके बेचारे यह बचे मारे गये ...... ......... ........................ ................................... उन के परिवारों का चूल्हा केसे जलता हे ?कसाब ने दोस्त होकर उनका खूब दोस्ती को निभाया बेशर्मी की सभी हदें पर कर गया हे ख़ुद ही देख लो जो ख़ुद के खाने में मटन-बिरयानी मांगता हे क्या जेहाद यही कुछ सिखाता हे ?

2 टिप्‍पणियां:

  1. yh to hme bhi pta he ki jb swarth samne hota he tb bhgwan ki sunta hi kon he ?

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  2. गीता की बोली के लिए आप का आभारी हूँ |एक बात कहू ईशवर का हुक्म ही फतवा होता हे ,ईशवर न अपनी मर्यादा तोड़ते हें ,न तोड़ने की आगया ही देते हें |मनुष्य ही अपने स्वार्थ को आगे रख ईशवर के वचनों को तोड़ - मरोड़ कर पेश करता हे और अपना उलू सीधा कर ता हे

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