शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

कलयुग की गीता

कलयुग
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कलयुग में यदि कृष्ण होते
तो गीता गीता कुछ इस था लिखवाते
हे अर्जुन
यह जो रिश्तेदारियां हें
मान ले , यह बीमारियाँ हे
जिन को तू रिश्तेदारियां बताता हे
वही एक दूजे के न बने
पिता -पुत्र में बनती नही
बीबी घर में रहती नही
भाई-बहन का रिश्ता तार-तार हुआ
गुरभाई --गुर बहन का रिश्ता ही बता रहा हे
तू फ़िर भी ऐसों को अपना बता रहा हे
कोन पिता किस का , कोन किसका पुत्र
एक साथ बैठ जाम टकराते हें
खींच कश सिगरेट का धुँआ उड़ाते हें
घर वाली नही अब यहाँ घर में
न मिलतीं ही घर में उसे ह्क्दारियां
अब मिलती हें इन को
बाहर की जिमेवारियां
अब से पहले नही थीं भारत में ऐसीं दावेदारियां
लिख डालो कलयुग की इस गीता में
चोरों के लिए ,बेकार हो गईं पहरेदारियां
क्या लिख्वाऊ अर्जुन इस माहोल में
चोर भी लगे मांगने थानेदारियां
मत युद्घ करना अर्जुन तू इन से
इस धर्म -मये युद्घ में
तेरा ऍनकाउन्टर हो जाए गा
फ़िर इजत से नही
कुते की तरहा घसीट
तुझे जलाया जाए गा
देख अनदेखी कर दे
सुन कर करले कानो को बंद
जुबान से कुछ कहना नही
कलम की तलवार से लड़ना नही
वीडियो बनता जा
सब को दिखता जा
अगर तू इस युद्घ में मारा जाए गा
तो समझ ले
एकाध दिन के लिए ,टी.वी .पर छा जाए गा

1 टिप्पणी:

  1. वाह प्यारे कलयुग की गीता में कलयुगी प्रभाव dikhane का धन्यवाद मेरे समर्थन के साथ|

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