गुरुवार, 12 नवंबर 2009

सनातन का तहलका


ज्योतिष समस्त वेदों का नेत्र कहा
 जाता है |
अर्थात ज्योतिष के जानकारों को कमसे कम वेदों का ज्ञान तो होता ही है ? ज्योतिष विद्या है आध्यात्मिक भी विद्या ही है परन्तु आध्यात्म विद्या को सर्वश्रेष्ठ विद्या जाना जाता है आध्यात्म विद्या का मानना है की लकीर के फकीर नही होना चाहिए |आइये अब तुला और कुम्भ राशि पर विचार किया जावे पहली बात तो यह है की जन्म और नाम दोनों ही राशियों काप्र्भाव मानव जीवन पर होता है इसमें कोई दोराय नही होनी चाहिए दूसरी -बात राशियों का स्वरूप भी मनुष्य के कुछ गुणों को उजागर किया करता है हम यहाँ विशेष रूप से कुम्भ और तुला राशि का जिक्र करते हैं कुम्भ का स्वरूप ही इसे भरने का होता है जोचाहो इस में अछा-बुरा भरा जासकता है हर अछी - बुरी मित्र शत्रु राशि से smbhndh

किया जासकता है |ज्योतिषाचार्यों ने तुला और कुम्भ दोनों राशियों को मित्र राशि शुक्र -शनी ग्रहों के आधार पर मानाहे तथा इन दोनों के आधार पर नाम या जन्म राशि से वर -वधु की पत्रिका का मिलान करते आ रहे हैं |मेरा उन कुम्भ और तुला राशि के मिलान वाले भाई बहनों से तथा ज्योतिषी भाइयो से अनुरोध हे की ध्यान दें कही यह लोग राम और सीता जिसे नम्बर १ जोड़ी कहा जाता जेसा जीवन तो नही बन गया है ?
     यदि ऐसा हे तो तुला पर ध्यान देने की जरूरत हो गी तुला तराजू चाहे लाखों रूपय मूल्य के जेवर इसमें तोल लें इसे तो रहना खाली ही होता है |
सनातन-धर्म की स्थापना करते समय भगवान राम (तुला)माता सीता (कुम्भ)का सम्बन्ध उजागर किया था |ग्रहस्थी का सुख दोनों ही नही उठा सके जब की वह राजाओं की सन्तान और खुद ही ब्रह्म स्वरूप थे |विचार करो आम आदमी का भविष्य कैसा हो गा ?
आम आदमी उन जैसा सामर्थवान तो है ही नही
क्या आज कुम्भ तुला का मिलान उचित होगा?

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