शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

सनातन धर्म की नरमाई

सनातन धर्म बहुत ही पुराना धर्म है |अनादी काल से चले आरहे इस धर्म में बहुत सी छुट दीं गईं हें |जो आज इस के पतन का कारण बनतीं जा रहीं हैं |सनातन धर्म के संस्थापक खुद भगवान हें ऐसा हमारे शास्त्र कहते हैं |इस सनातनधर्म में जन्मे सनातनियों को भगवान ने बहुत सी छुटें दे रखीं हैं |यदि कोई पाठ-पूजा नही कर सकता तो न करे                               मन्दिर माथा टेकने नही आ सकता तो न आये ,मन्त्र को यदि विधि विधान से नही जप सकता तो ना जपे |यंत्र-मन्त्र-तन्त्र की मर्यादा का पालन नही कर सकता तो नकरे |यदि आसन पर बैठ कर ध्यान नही लगा सकता तो भी कोई बात नही |जब ऋषि मुनियों ने इस बात का विचार किया तो उन्होंने कुछ खोजें कीं जप-तप -व्रत -कठोर से कठोर तपस्याएँ करी तो पाया इन सभी किर्याओं में सबसे बडा बाधक इन्द्र देवता ही हें |शकी स्वभाव के इन्द्र की सोच सदा यही रही कि कही यह सनातनी मनुष्य मेरा सिंघासन मुझ से न छीन ले ,भयभीत इन्द्र देव अपने देवताओं द्वारा आक्रमण करवा उस सनातनी कि तपस्या में विघ्न डालना शुरू कर देते हैं |देवता भी मारने का प्रयास नही करते डराते -धमकाते हें भयभीत करते हैं |कर्म-फल को भोगने वाला व्यक्ति अपने शुभ कर्मों के बल पर ही इन्द्र देव के वारों से खुद को बचाता हे यदि न बचा पावे तो गया काम से फिर जब मनुष्य जन्म मिले गा तभी पुन्हा प्रयास करे गा सफलता-असफलता कि कोई गारंटी नही|जीत गया तो सिद्ध नही तो फिर से चोरासी का चक्र शुरू |जबकि मनुष्य जन्म ही मुक्ति का द्वार कहलाता हे |हमारे अधिकाँश धर्म गुरु ज्योतिष शास्त्र के अज्ञानी पाखंड पूर्वक हर किसी को अभिमंत्रित यंत्र -मन्त्र -तन्त्र -जप -तप -व्रत की विधियाँ बता चोरासी के चक्र में डालते जा रहे  हैं |सनातन धर्म में ऐसा कोई कठोर दंड ना होने के कारण सनातन पतन की और जा रहा हे |और इन्द्र की मार खा रहा है |जिस का फल बाड़ सुखा बादमे भूख -मरी ही तो होनी है |सनातन पुरुष-परमात्मा अपने वचनों को निभा रहा हे |भूखे मरने का कोई समाचार शायद अभी तक नही आया हे |कारण इश्वर की दयालुता ही नही तो और क्या है ?
                     समाजिक नियमो में बदलाव आया वोट की राज नीती शुरू हुई |सनातन धर्म का विरोध करने वाले मुर्ख समाज की उत्पति भी सनातन धर्म के पतन का कारण बनी |सनातन धर्म का मुख्य नियम मेरी समझ में तो यही आया कि जिस कर्म में बुराई नजर आवे उसे त्याग दें |अपनाए नही |किसी जगहा तो मेने यह भी लिखा देखा हे कि जिस राजा के राज्य में सनातन का विरोध होता हो उस राज्य को ही छोड़ दो |अब स्नात्निष्टों को वीचार करना होगा कि वोट दें या त्याग दें |सनातन प्रभु भगवान का तो स्पष्ट कहना हे कि मोक्ष के उपाय हेतु यदि तूं कुछ भी करने में खुद को असमर्थ पाता हे तो भी चिंता न कर सोते जागते उठते बैठते खाते पीते घूमते फिरते सिर्फ मुझे ही याद कर मै ही तुझे पाप मुक्त कर मुक्त करुगा धरातल पर ऐसा कर पाने में कोई दुसरा सक्षम नही हे ???????????????????
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2 टिप्‍पणियां:

  1. मित्र ! सनातन धर्म जिसकी आप चर्चा कर रहे हैं वही इस्लाम है जिसके मानने वाले आज केवल मुसलमान हैं। इस धर्म में मूर्तिपूजा वर्जित है, इस धर्म में कल्कि अवतार की प्रतीक्षा हो रही है। और यह सब इस्लाम का गुण है क्योंकि अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद ही कल्की अवतार हैं। आपलोग कहाँ भटक रहे हैं ? ज़रूरत है कि सत्य की खोज करके अपने वास्तविक धर्म का पालन करें। इस्लाम आपका धर्म है आपके पैदा करने वाले का उतारा हुआ नियम है।

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  2. साफात आलम जी सनातन धर्म जिसकी में चर्चा कर रहा हूँ वह इस्लाम ही नही वास्तव में वही हिन्दुओं -मुसलमानों -सिखों -और ईसाइयों का भी धर्म हे यही चारों धर्म सनातन धर्म हैं |हम लोगों में कम से कम में तो नही भटक रहा न जाने ऐसा आपको क्यों लगा |की आने वाले अवतार के बारे में केवल इस्लाम को ही इल्म हे ऐसा इन चारों धर्मों के पवित्र ग्रन्थों में मिल जाएगा आप भी ज्ञान वान है आप ही की तरहा बाकि के धर्मों सभी धर्मों की भी यही कथनी हे की जिस धर्म में उस ईश्वर ने आपको जन्म दिया हे उसे कभी न त्यागना अगर त्यागते हो तो आप ईश्वर को मुर्ख मानने का अपराध करते हैं ईश्वर नातो हिन्दू हे ना मुसलमान ना सिख ना इसाई वह तो सब का सांझा हे सिर्फ एक ही ईश्वर हे चारों धर्मों को उसने लग-भग एक ही शिक्षा दी हे अपने धर्म के गुण -दोषों के गुणों का बखान न कर मेरे गुणों का बखान करो चोरी नकरो व्य्यभिचार निंदा चुगली से बचो आज सनातन धर्म को बचाने की जरूरत हे अवतार की नही ?क्यों की हम जानते है कि अवतारी पुरुष भगवान हे और अभी तक का इतिहास यही बताता हे कि अवतारी ने दुख ही भोगेहें |अगर मेरा भगवान दुःख उठावे तो मुझ पर लानत का आरोप लगे गा उससे बेहतर तो यही हे कि अपने -अपने धर्म का पालन किया जावे और आने वाले अवतार के कुछ कष्ट हम मिटाने का प्रयास तो करें ?

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