रविवार, 25 अक्तूबर 2009

ज्ञान


खुल गये दरवाजे
जिनके ज्ञानके
पड़ता हे चलना खुद को सम्भाल के
ज्ञान का अहंकार डूबा देता हे
ज्ञान तो भवसागर से तार देता हे
ज्ञान का ज्ञानी नही कोई जहाँ में
पीट पीट ढीन्डोरा ज्ञान का  लगे
लगे अपनी दूकान चलाने
अविनाशी भगवान से बडा कोई ज्ञानी नही
जो करे सांझा ज्ञान को
उससे बडा कोई दानी नही
उपदेशक हर घर में जन्म लेते हैं
उनको बाहर तलाशने की जरूरत नही
जरूरत हे खुद ही खुद को तलाशने की
जिस ने खुद को तलाश लिया
मानो खुदा उस ने पा लिया
आचे बुरे का ज्ञान
तुरंत हो जाता हे
यही वो ज्ञान हे
जो भव सागर पार करवाता हे
रामराम
मुस्लिम धर्म में भी काजी खातून
शायद यह पहली काजी खातून हें

ना हिन्दू ना सिख मुसलमान और इसाई
नही हे कोई अपने धर्म में मेरे भाई
सनातन धर्म में हर सनातन को
दे नियम एक से सनातन बनाया
नियम तोड़ दिए सभी ने
स्वार्थ के नियम बना लिए
शामिल कर लेते किसी को भी अपने धर्म में
बिना यह सोचे विचारे
खुदा ने उसे स्थापित किया था और कहीं
फिर हमे उसकी क्या जरूरत पडी ?


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