शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

लालच


धन बडाने की चाहत
बदल गयी बनकर मिलावट
मेहनत की दाल मिलावटी
घी तेल लगे बनने बनावटी
हर शै बनावटी होगयी
फल-फ्रूट -और सब्जी
यहाँ तक कि
सांस भी जहरीली होगयी
फ़िक्र छोड़ जिंदगानी की
लगी है होड़ अपना धन बडाने की
धन अपना बडाने को
जोर पूरा लगा लिया
फिर भी इंसान
है परेशान ?
जहर पूतना के ढूध की
न आई किसी काम
ऐसी कोन सी ताकत है
जो इन सब के प्रयासों से
आम आदमी को बचा रही है
यहाँ तो बचानें वाली दवा
भी है बनावटी
फिर कोन
बचा रहा है तुम को
उस को धन्यवाद तो कहो
क्यों इतने कृतघ्न होगये हो
उस के नाम पर
भोली -भाली जनता को ठगते हो
वह बचाने वाला हे कितना बलवान
कर लो उस की पहिचान
बाज आजाओ घिनोनी हरकत से
बचाने वाला अभी तो शांत है
गर गुसे में वो आयेगा
मिटा दे गा बनावटीपना तेरा
जो मिल रहा हे आज तुझे
छपर फाड़ के
छीन ले गा वो
एक थपड मार के









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