बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

सिख पन्थ

अकाल पुरुष परम पिता परमात्मा की आज्ञा से आजसे कुछ १०० वर्ष पहले सनातन धर्म के रूप में सीखने वालों की जमात के लिए सीख धर्म की स्थापना हुई थी                                                                                    अकाल पुरख की आज्ञा हुई की ग्रन्थ साहिब को हर सीखने वाला व्यक्ति आगे से अपना गुरु माने | इसी  पवित्र गुरु ग्रन्थ साहिब जी को गुरु देव का शरीर माना जावे | इन्ही की आज्ञा अनुसार शिष्य कर्म और व्यवहार करे |तिलक बोदी किसी भी प्रकार का भेस जो खुद को समाज से अलग विशेष दर्जा दिलाता हो धारण ना किया जावे |इस पन्थ में गुरु गोबिंद सिह साहिब ने ब्राह्मिण(ब्रह्म के ज्ञानी )कमजोर नर-नारी मासूम बचों गऊ    की रक्षा हेतु (जो उन दिनों मुस्लिम बादशाहों के जुल्मों के शिकार होरहे थे ) सिंह के स्वरूप में खालिस (शुद्ध) खालसा का पन्थ साजा| उन पांच प्यारों की रचना अमृत पान करवा कर खालसा पन्थ को बनाया आगे से ग्रन्थ साहिब को गुरु मानने की आज्ञा भी दी यह भी कहा कि भविष्य में इस गुरु ग्रन्थ साहिब को पार्ट्स में ना बांटा जाए |
                 ऐसा मुझे मेरे सिंह मित्रों ने बताया था
                      कुछ १०० वर्षों बाद आज इन बातों का स्वरूप जेसा में देखता हू दुख देता हे



                          गुरु साहिब के द्वारा अमृत पान करा आज भी हम सजाते हें पांच प्यारे

गुरु साहिब का स्वरूप जेब में लेकर घूम ते लोगों को देखा



गुरु ग्रन्थ साहिब को कहीं ले कर जाने की प्रथा तो यह हे फिर जेब में क्यों में नही समझा

यह
 यह हे एक देह

क्या


 क्या इसे देह माना जा सकता हे ?

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