मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

सनातन धर्म

चैत्र-शुक्ल-प्रतिपदा को आदि तिथि भी कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी। सनातन धर्म को मानने वाले लोग इस दिन को उत्सव की तरह मनाते हैं। खास बात यह है कि इस दिन ब्रह्मा की मूर्ति की न केवल तेल से मालिश की जाती है, बल्कि स्नान भी कराया जाता है। इसके बाद विधिपूर्वक उनकी पूजा की जाती है।
पूजा की विधि :सबसे पहले बालू की वेदी बनाई जाती है या फिर किसी चौकी पर सफेद- वस्त्र बिछा दिया जाता है। इस पर केसर से रंगे चावल के दानों से आठ दल वाला कमल बनाया जाता है। अष्टदल कमल के बीच में ब्रह्मा की मूर्ति या चित्र रख कर उनकी पूजा की जाती है। पूजा के दौरान उनसे न केवल जीवन से बाधा समाप्त करने, बल्कि नवसंवत्सरके शुभ होने की प्रार्थना भी की जाती है। आज के दिन न केवल ब्रह्मा, बल्कि संवत्सर [वर्ष] के राजा की भी पूजा होती है। दरअसल, नवसंवत्सरकी शुरुआत जिस दिन [वार] होती है, उस वार का स्वामी ग्रह ही संवत्सर का राजा होता है।
उदाहरण के लिए इस संवत् 2066की चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन शुक्रवार है, इसलिए इस संवत्सर का राजा शुक्र होगा।
घर की सजावट :नवसंवत्सरके दिन धार्मिक लोग अपने घर पर धर्मध्वजफहराते हैं। वे न केवल अपने घरों की सफाई करते हैं, बल्कि रंगोलीभी बनाते हैं। इस दिन नए संवत्सर का पंचांग सुना जाता है। साथ ही, दान भी दिया जाता है।
स्वास्थ्य लाभ :चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन नीम के कोमल पत्तों और फूलों के चूर्ण में काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिश्री और अजवाइन मिला कर मिश्रण तैयार किया जाता है। इस मिश्रण को वर्ष भर खाने से कभी भी खून से संबंधित बीमारियां नहीं होती हैं। ध्यान दें कि विक्रम संवत् 2066के शुरू होने पर सृष्टि की रचना के 1,95,58,85,110वर्ष बीत जाएंगे।

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