रविवार, 14 मार्च 2010

सनातन धर्म में नारी

ओरत को पूजनीय होने का दर्जा सनातन धर्म ने दिया हुआ है ,कलयुग हे,ओरत को पसंद नही की उसे पूजा जावे ,वह तो अपनी स्तुति युगों-युगों से करवाने के पक्ष में रही है ,गीता का मजाक ही समझ लो ,क्या स्वार्थी मर्द किसी के हाथ में अपना घर परिवार सोंप सकता है? नही |परन्तु ओरत में ही वो शक्ति है जिसके वशीभूत हो मनुष्य उसे अपना सबकुछ देने को तयार हो जाता है उदाहरण के रूप में दादी माँ को ही देख लें ,घर की मालकिन होती है ,जब ओरत ही अपना सनातन संस्कार भूल गयी ,तब उसे अपना आप असुरक्षित नजर आने लगा .शादी के 7 फेरों  में  ओरत को ब्राह्मिण द्वारा शिक्षा दी जाती है की पति के शुभ कमों का आधा तुमको मिले गा पर पति के बुरे कर्मों में से तुमको भोगने के लिए कुछ नही मिले गा ओरत को यह बात नही पची ,पति शराबी कबाबी पहलेसे था नही था तो हो गया  ,दुःख सुख के आने पर ओरत घबरा गयी ,अनाप शनाप धर्म गुरुओं की शरण जा पड़ी ,वहाँ भी उस को यही  बतावा गया हो गा की पति ही परमेश्वर होता है ,वह फिर भी नही मानती कि पति परमेश्वर हो सकता है ,फिर जो हुआ बाबा लोग महिला केरूप कि आग में भस्म होने लगे , रामायण से यह सिखा जा सकता है कि अति कि सुन्दरता और पति से व्यर्थ कि जिद तथा देवर कि बात ना मानने से ही सीता जी का रावण ने अपहरण किया था ,मेरी समस्त धर्मों क़ी महिला साथियों से बनती हें ,अपनी अंतरात्मा क़ी आवाज सुने क्या वो सीता जेसी हैं?
                                                 तभी तो किसी ने कहा है
                                                      तू कोन है तेरा नाम है क्या , सिताभी यहाँ बदनाम हुई
  यदि आज धर्म गुरु खुल कर कहने लगे हैं क़ी ओरत मन्दिर तीर्थ में अपने परिवारिक सदस्यों के साथ जाए, या ओरत अछे संस्कारों से युक्त बचे पैदा करे तो इन पड़े लिखे खुद को सभय कहने वाले समाज को दिक्त क्या है ?क्या वह ओरत को बेपर्दा कर उपरोक्त दोषों को आमंत्रित नही कर रहे ?

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