रविवार, 7 मार्च 2010

धूर्त बाबाओं की जमात

इस बाबा पर मानसिक रुप से बीमार लड़की को अगवा करने का संगीन आरोप 
है।
इस बाबा पर मानसिक रुप से बीमार लड़की को अगवा करने का संगीन आरोप है।
         
बाबा रामदेव ने पिछले दो साल से पतंजलि योगपीठ हरिद्वार और गंगामुक्ति अभियान के नाम पर संतों को एक साथ लाने की कोशिशें कीं। उन्हें थोड़ी कामयाबी भी मिली है। पिछले साल हरिद्वार में हुए सम्मेलन में भाग लेने के बाद दिल्ली के एक बाबा ने कहा था कि शिष्य भी अब एक महात्मा तक कहाँ सीमित रहे। वे भी चार-पाँच गुरु बनाने लगे हैं और हर जगह अपना निवेश करने लगे हैं। हमें भी रंग-ढंग बदलना पड़ेगा वरना अपने ही आश्रम तक सीमित रह जाएँगे। 
 इन दिनों एक ही मंच पर थोड़ी देर के लिए साथ बैठने का चलन इसलिए भी शुरू हुआ है कि कुछ धर्मगुरु गीता, भागवत और वेदांत के आधार पर प्रबंधन सिखाने लगे हैं। अपना उद्योग चलाते हुए दूसरी प्रतिस्पर्द्धी कंपनियों में हिस्सेदारी रखना और वहाँ से भी लाभ कमाना प्रबंधन का नया फंडा है। मुंबई के स्वामी पार्थसारथी, जया राव और चिन्मय मिशन के स्वामी सुबोधनंद का मानना है कि धर्मगुरुओं को भी मिलजुल कर काम करना चाहिए। किसी जमाने में विश्व हिंदू परिषद ने साधु-संतों को एक मंच पर लाने की कोशिश की थी। शुरुआती दिनों में यह प्रयोग चारों शंकाराचार्य, जैन, बौद्ध और सिख पंथ के सम्मुख विफल रहा। तब व्यावसायिक या धार्मिक सामाजिक कारण आज की तरह प्रबल नहीं हुए थे। 
                                                  कुछ वर्ष पहले दिल्लीके छतरपुर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध आद्यशक्ति कात्यायनी पीठ में एक संत-सम्मेलन हुआ था उसमें आसाराम बापू के अलावा एक निवर्तमान शंकाराचार्य और एक अन्य स्वामी भी बुलाए गए थे। आसाराम बापू के शिष्यों की संख्या ज्यादा थी। बापू को कहीं जाना था। उनका प्रवचन पहले करवा दिया गया और प्रवचन होते ही बापू उठकर चलते बने। चलते-चलते उन्होंने चुटकी बजाई और उनके शिष्य भी उठकर चले गए। 
भगवान के वचनों को सुनने कोई नही आता जो आता हे इन पाखंडियों को सुनने ही आता है .इस बात को जानते हुए यह लोग अपने अपने शिष्यों की अलग-अलग जमातें बना अपना शक्ति प्रदर्शन नही करते तो और क्या करते हैं ?

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