शनिवार, 5 दिसंबर 2009

सनातन धर्म की जय

गांव जहां पैदा होते हैं ज्योतिषीठ्ठ मधुकर मिश्र, बेतिया (प.चंपारण) न संस्कृत विद्यालय की पढ़ाई, न किसी ज्योतिष अनुसंधान केंद्र का तमगा। फिर भी किसी बड़े ज्योतिषाचार्य की चुनौती को स्वीकारने का जज्बा। गांव के बच्चे-बच्चे में दिखता है यह दम-खम। लौरिया अंचल के पंडा पट्टी गांव में रहने वाले परिवारों की आजीविका का साधन है ज्योतिष विद्या। यह विद्या यहां पारिवारिक पाठशाला में अर्जित की जाती है। हर पीढ़ी अगली पीढ़ी को उपहार में ज्योतिष की शिक्षा दे जाती है। यहां के पचास से ज्यादा पंडे नेपाल समेत देश के कोने-कोने में हैं। यहां के दर्जनभर पंडे विभिन्न जगहों की कई क्षेत्रीय भाषाओं की जुबान बोलते हैं। 150 परिवार वाले इस गांव की आबादी 700 है। जिला मुख्यालय बेतिया से करीब 35 किलोमीटर देउरवा गांव के पोखरे के निकट इस बस्ती के मुख्य द्वार पर कुल देवता गोगा ब्रह्म बाबा और कुल देवी मां गुंजेश्वरी के अलावा मां काली का स्थान है। इस समाज के लोगों का मानना है कि ज्योतिष शास्त्र में हस्त रेखा, मस्तक रेखा गणित, फलित ज्ञान के अलावा कुंडली निर्माण, तंत्र विद्या और अनुष्ठान संपन्न कराने के सारे गुण वे पारिवारिक पाठशाला में ही सामूहिक परिचर्चा और प्रायोगिक आधार पर सीखते हैं। रावण और भृगु संहिता तो यहां की लोगों को जुबानी याद है। पंडा तारकेश्वर शरण उपाध्याय ने तो बुलंदशहर जिले के खुरजा में श्री नवदुर्गा शक्ति मंदिर की स्थापना कराई है और वह नेपाल में गुरु जी के नाम से प्रसिद्ध हैं। उपाध्याय का कहना है कि अगर सरकार आसपास ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र और कालेज खोल दे तो इस समाज के बच्चे और भी बेहतर कर सकते हैं। समाज से उप सरपंच निर्वाचित उमेश पंडा का कहना है कि गांव के कई युवक देश भर में श्रद्धालुओं को यात्री बसों के माध्यम से तीर्थ स्थलों का भ्रमण, गया में पिंडदान और संकल्प लेकर जल पूजा भी कराते हैं। उधर, पंडों का यह गांव मूलभूत सुविधाओं सड़क, नाली, विद्युत आदि से अब भी वंचित है। हाल ही में यहां एक राजकीय प्राथमिक विद्यालय खुला तो है, पर उसका भवन नहीं बन सका है। यहां की महिलाओं में शिक्षा की दर काफी कम है। कान इलाज के माहिर भी कान का डाक्टर बनने के लिए एक विद्यार्थी को भले पांच साल लग जाते हों, पर पश्चिमी चंपारण जिला मुख्यालय से सटे चनपटिया अंचल के जोकहां गांव का बच्चा होश संभालते ही कान सफाई और उसकी कई बीमारियों के सफलतम इलाज में माहिर हो जाता है। यहां के दर्जनों परिवार का भरण-पोषण कान की सफाई के बूते ही चलती है। बेतिया कोर्ट परिसर हो या जिले व बाहर का कोई हिस्सा, यहां के विशेषज्ञ कान सफाईकर्ताओं की अपनी अलग ही पहचान है। गांव महापात्र ब्राह्मणों का है और करीब दो सौ परिवार निवास करते हैं। हालांकि, अधिकतर परिवार नौकरी व अन्य पेशे से जुड़ चुके हैं, पर रामएकबाल मिश्र, राम छबीला मिश्र, विद्यार्थी मिश्र, दीनानाथ मिश्र, बोल मिश्र, ओंकारनाथ मिश्र और रामनरेश मिश्र जैसे दर्जन भर लोग इस पारंपरिक पेशे से ही जुड़े हैं। इन्हें एक कान सफाई के लिए बीस से सौ रुपए तक प्राप्त होते हैं। बताते हैं कि इनके पूर्वज स्वर्गीय श्याम जी मिश्र ने यह विशेषज्ञता कोलकाता और दिल्ली जैसे महानगरों से प्राप्त की थी। उन्हीं से यह परंपरा आगे बढ़ी। हालांकि महंगाई से आधुनिक युग में उनकी वंश परंपरा लुप्त होने लगी है।

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